अंजुरी मैं भरे
,तर्पण के जल जैसा ,
है ये जीवन |
जो टपकता है ,बूंद बूंद ,
नीचे की ओर रिसता हुआ |
हर बूंद एक
साँस की तरह ,
जो हवा मैं बिखरती है और
हो जाती है विलीन
शून्य मैं |
टिप टिप गिरती बूंदों से ,
नजाने कितने
बुझाते है अपनी प्यास |
ले कर तृप्ति
चल देते है अपने अपने रास्ते |
कोई भी नहीं देखता ,
अंजुरी का
पलपल ...रीतना ,
जब तक बूंद है ,
तभी तक है अंजुरी के मायने |
जब खाली हुई तो,
सब कुछ बेमानी |
वाह रे ..स्वार्थ
क्या ? तेरा कोई अंत नहीं .....|
,तर्पण के जल जैसा ,
है ये जीवन |
जो टपकता है ,बूंद बूंद ,
नीचे की ओर रिसता हुआ |
हर बूंद एक
साँस की तरह ,
जो हवा मैं बिखरती है और
हो जाती है विलीन
शून्य मैं |
टिप टिप गिरती बूंदों से ,
नजाने कितने
बुझाते है अपनी प्यास |
ले कर तृप्ति
चल देते है अपने अपने रास्ते |
कोई भी नहीं देखता ,
अंजुरी का
पलपल ...रीतना ,
जब तक बूंद है ,
तभी तक है अंजुरी के मायने |
जब खाली हुई तो,
सब कुछ बेमानी |
वाह रे ..स्वार्थ
क्या ? तेरा कोई अंत नहीं .....|
जब तक बूंद है ,
ReplyDeleteतभी तक है अंजुरी के मायने |
जब खाली हुई तो,
सब कुछ बेमानी |
वाह रे ..स्वार्थ
क्या ? तेरा कोई अंत नहीं .....|
स्वार्थ का कभी कोई अंत हो भी नहीं सकता बल्कि सही मायने मे स्वार्थ पर ही दुनिया टिकी हुई है।
हर जगह तो दिखता है स्वार्थ।
अंजुरी के खाली होने में भी स्वार्थ है ;एक चीज़ से खाली होगी तभी तो दूसरी चीज़ आएगी।
सादर
बहुत ही सुन्दर बिम्ब का प्रयोग!
ReplyDeleteभावनाए जीवन को व्यक्त करती ......बहुत ही सुन्दर सृजन!
ReplyDeleteकोई भी नहीं देखता ,
ReplyDeleteअंजुरी का
पलपल ...रीतना ,
जब तक बूंद है ,
तभी तक है अंजुरी के मायने |
जब खाली हुई तो,
सब कुछ बेमानी |
वाह रे ..स्वार्थ ...swarth ke siwa kuch bhi nahi
सुंदर बिंब के माध्यम से अपनी बात कही आपने।
ReplyDeleteअंजुरी मैं भरे..अंजुरी में भरे।
ReplyDeleteममता जी, आपकी कविता बहुत अच्छी है। इसमें आपने जीवन को एक नये अंदाज में प्रस्तुत किया है। पर कविता अंत में कहीं खटकती है।
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत लिखा है.
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