मैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ
पर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
वो कोनसे अल्फाज लूँ
जो आज की कविता लिखूँ
हलचल सी कुछ मन में हुई
और शब्द भी सजने लगे
गुमसुम सी इस कलम के
हाथ भी चलने लगे
फिर भाव ने आकार कलम की
उँगलियाँ भी थांम ली
तब ह्रदय ने शब्द चुन कर
पंग्तियाँ कुछ बाँध ली
अब प्रश्न मन ही मन उठा
क्या काव्य की सरिता लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
मैं सोचती हू अब लिखूँ
किस शब्द के संसार पर
रूप पर श्रंगार पर या
दुःख के अम्बार पर
टूटते नाते लिखूँ या
फूटते आँसू लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
पल रहा तूफान है
और चल रहीं हैं आंधियां
जल रही बारूद है
और दूर तक हैं सिसकियाँ
जाने कब चोराहा सुलगा
राख गलियां भी हुई
गोद फिर उजड़ी कई और
माँग भी सूनी हुई
मो़त का मंजर लिखूँ या
आग का दरिया लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
सोच कर देखो जरा
क्यों मजहबों की जंग है
एक् सा सबका पसीना
एक लहू का रंग है
एक कतरा भी लहू का
तुम यहाँ गिरने न दो
एक मोती भी किसी की
आँख से झरने न दो
छोड़ दो सब नफरतें
और तोड़ दो इस जंग को
प्यार से मिल बैठ कर
फिर प्यार की कविता लिखू
पर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
वो कोनसे अल्फाज लूँ
जो आज की कविता लिखूँ
हलचल सी कुछ मन में हुई
और शब्द भी सजने लगे
गुमसुम सी इस कलम के
हाथ भी चलने लगे
फिर भाव ने आकार कलम की
उँगलियाँ भी थांम ली
तब ह्रदय ने शब्द चुन कर
पंग्तियाँ कुछ बाँध ली
अब प्रश्न मन ही मन उठा
क्या काव्य की सरिता लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
मैं सोचती हू अब लिखूँ
किस शब्द के संसार पर
रूप पर श्रंगार पर या
दुःख के अम्बार पर
टूटते नाते लिखूँ या
फूटते आँसू लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .......
पल रहा तूफान है
और चल रहीं हैं आंधियां
जल रही बारूद है
और दूर तक हैं सिसकियाँ
जाने कब चोराहा सुलगा
राख गलियां भी हुई
गोद फिर उजड़ी कई और
माँग भी सूनी हुई
मो़त का मंजर लिखूँ या
आग का दरिया लिखूँ
मैं सोचती हू कुछ लिखूँ .........
सोच कर देखो जरा
क्यों मजहबों की जंग है
एक् सा सबका पसीना
एक लहू का रंग है
एक कतरा भी लहू का
तुम यहाँ गिरने न दो
एक मोती भी किसी की
आँख से झरने न दो
छोड़ दो सब नफरतें
और तोड़ दो इस जंग को
प्यार से मिल बैठ कर
फिर प्यार की कविता लिखू
मौत का मंजर लिखूँ या
ReplyDeleteआग का दरिया लिखूँ .... मौत है सच्चाई और हर तरफ है आग का दरिया ... एक बार गहरे तैरना है और पन्नों पे सूख जाना है
my email id - rasprabha@gmail.com
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ReplyDeleteआँख से झरने न दो
ReplyDeleteछोड़ दो सब नफरतें
और तोड़ दो इस जंग को
प्यार से मिल बैठ कर
फिर प्यार की कविता लिखू
... sach pyar insan ko insan banaye rakhta hai aur nafrat mein dusaron ke saath hi khud bhi pal pal marta hai..
bahut sundar manobhav..
bahut achha mahsus hua aapke blog par aakar..
ओह! आपने तो बहुत सुन्दर लिखा है,ममता जी.
ReplyDeleteसच्चा सच्चा ,अच्छा अच्छा.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
छोड़ दो सब नफरतें
ReplyDeleteऔर तोड़ दो इस जंग को
प्यार से मिल बैठ कर
फिर प्यार की कविता लिखू........बहुत सुन्दर भावो को प्रकट करती खूबसूरत रचना |
मैं सोचती हूँ कुछ लिखूँ
ReplyDeleteपर क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
वो कोनसे अल्फाज लूँ
जो आज की कविता लिखूँ .... बहुत बहुत सुन्दर पंक्तिया.... बहुत कुछ समेटती है आपकी रचना.....
कितनी खूबसूरती से शब्दों का ताना बना बुना है आपने.
ReplyDeleteसंजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
ब्लॉग पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com