मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
सच्चाई पर हैं सौ पहरे
बेईमानी का कोई जिक्र नहीं |
पल रहा ह्रदय में भ्रष्ट तंत्र ,
अपनों की कोई फिक्र नहीं |
बस फिक्र सदा है निज हित की ,
इतिहास घिनोना रचा यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
जिस सिहासन पर बैठे हो
ये शायद तुमको याद नहीं |
ये ताज हमीं ने पहनाया
वर्ना कोई औकात नहीं |
पर रुको तनिक ठहरो देखो ,
सब पोल तुम्हारी खुली यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
पहले शब्दों के हेर फेर ,
फिर सम्मोहन के वादे हैं |
पर तुमको सारा जग जाने ,
कैसे नापाक इरादे हैं |
हर बात तुम्हारी घातों की,
छल छिद्र कपट सब पला यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
ममता बाजपेई
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
सच्चाई पर हैं सौ पहरे
बेईमानी का कोई जिक्र नहीं |
पल रहा ह्रदय में भ्रष्ट तंत्र ,
अपनों की कोई फिक्र नहीं |
बस फिक्र सदा है निज हित की ,
इतिहास घिनोना रचा यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
जिस सिहासन पर बैठे हो
ये शायद तुमको याद नहीं |
ये ताज हमीं ने पहनाया
वर्ना कोई औकात नहीं |
पर रुको तनिक ठहरो देखो ,
सब पोल तुम्हारी खुली यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
पहले शब्दों के हेर फेर ,
फिर सम्मोहन के वादे हैं |
पर तुमको सारा जग जाने ,
कैसे नापाक इरादे हैं |
हर बात तुम्हारी घातों की,
छल छिद्र कपट सब पला यहाँ |
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?
ममता बाजपेई