Saturday 27 October 2012

शब्द


 शब्द जो करते  हैं
आहत
रहते हैं महफूज ता उम्र
स्मृतियों के पिटारे में .........
ठुक जाते हैं
कील की तरह
मन की कोमल दीवार पर
और उन्हीं  कीलों  पर
टंग  जाती हैं
तार तार हुई भावनाएं
बेबस से हम
करते रहते हैं प्रयास
इन तारों को  जोड़ने का
छिपा कर दर्द
अलापने लगते हैं
फिर से नया राग
पर ...
मन के एक कोने में
 सिसकती रहती हैं
भावनाएं
सुप्त हो जाता है निनाद
रह जाते हैं केवल  शब्द
जो कर गए थे
  आहत

ममता

Friday 19 October 2012

कितने शातिर हैं हम


बना कर एक
प्रस्तर की प्रतिमा
पूजते हैं हम उसे ,
हो कर श्रद्धावनत
माँगते हैं वरदान
और वो,
भर देती है झोलियाँ आशीषों से
वो ,होती है
हमारी आराध्य कुलदेवी रक्षक ...........
झुकाते हैं शीश
हो जाते हैं तृप्त दर्शन मात्र से
लेकिन ,
जब वो धर कन्या का रूप
स्थापित होती है
गर्भ में
तब ,बड़ी निष्ठुरता से
खरोंच फेंकते हैं उसे
बाहर .........
कहीं कोई स्थान नहीं उसका
न मन में न घर में
और हम फिर से
मशगूल हो जाते हैं
श्रद्धा के अभिनय में
कितने शातिर हैं हम !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Wednesday 10 October 2012

तर्पण


जो  इस   दुनियाँ   में  नहीं  हैं  अब ,
उनका    हम   करते    हैं  तर्पण
लेकिन    जो घर  में   जीवित  हैं ,
एकाकी   पन     से   पीड़ित   हैं
उनका   कोई    सम्मान     नहीं ,
रखता   अब   कोई   ध्यान  नहीं
अभिशप्त   सा   जीवन   जीते  हैं ,
वे  सदा    ही   गुम   सुम रहते हैं
उनके   अपने   ही  कभी   कभी,
 घर  से   बेघर   भी  करते  हैं
वृधाश्रम    की   दीवारों   में  ,
 ऐसे    ही   जीवन   पलते  हैं
फिर   दुनियाँ   दारी  की  खातिर ,
करते   हैं    हम   उनका  तर्पण
आशीषों    से   झोली   भर   के ,
हल्का   कर   लेते  अपना   मन
बस ...इतना   सा   हम  कर लेते ,
जीते   जी   उनको   सुख   देते|
सम्मान   उन्हें   करते    अर्पण ,
सच्चा    तब    हो  जाता  तर्पण |