विचार ...?
निराली सी इनकी दुनियाँ
आते हैं , जाते है |
निरंतर मन के आकाश पर
घुमड़ते रहते है|
आवारा बादलों की तरह ,
ऊपर नीचे
व्र्त्ताकर ,त्रिकोण ,चतुर्भुज
असंख्य आकृतियाँ....................|
फिर एकदम .गुथम गुत्था होते से |
कभी कभी एक सरल रेखा जैसे चलते फिरते ,हाथ हिलाते
मुस्कुराते हुए चले जाते अपने अपने रास्ते |
दूसरे ही पल ..वापस आ धमकते ,
कुछ हडबडाते से ..|
.तीव्र गति से भागते दौड़ते ,
एक दूसरे से टकराते
बन जाते अंतर द्वन्द
क्षण मात्र मैं ला देते विध्वंस |
कुछ पलों बाद .........स्वयं ही
सहलाते स्वयमेव धावों को |
खुद के लाये विनास को देख कर
आँसू बहाते .सहम जाते ,
सकुचाते से बैठ जाते
एक कोने में .....
चुपचाप |
चुपचाप?
क्या सच मैं ?
नहीं ......वे बैठे बैठे ही फूलते रहते ,
गुब्बारे की तरह |
फिर बिना पंखों के ही उड़ने लगते
मन के आकाश पर |
झूमते लहराते नाचते कूदते
धमा चोकडी मचाते खुशी से फूले न समाते
और ...फूलते फूलते .....फट जाते ...फटाक ..|
लाल पीले होते ,हात लहराते
,उंगली दिखाते
उलाहने .. आरोप.... प्रत्यारोप ...नजाने क्या क्या |
अरे... अरे ...भाई रुको ...रुको तनिक
तुम भी कुछ आराम करो
और मुझे भी सोने दो |
ख़म खः ..नीद खराब कर दी |
निराली सी इनकी दुनियाँ
आते हैं , जाते है |
निरंतर मन के आकाश पर
घुमड़ते रहते है|
आवारा बादलों की तरह ,
ऊपर नीचे
व्र्त्ताकर ,त्रिकोण ,चतुर्भुज
असंख्य आकृतियाँ....................|
फिर एकदम .गुथम गुत्था होते से |
कभी कभी एक सरल रेखा जैसे चलते फिरते ,हाथ हिलाते
मुस्कुराते हुए चले जाते अपने अपने रास्ते |
दूसरे ही पल ..वापस आ धमकते ,
कुछ हडबडाते से ..|
.तीव्र गति से भागते दौड़ते ,
एक दूसरे से टकराते
बन जाते अंतर द्वन्द
क्षण मात्र मैं ला देते विध्वंस |
कुछ पलों बाद .........स्वयं ही
सहलाते स्वयमेव धावों को |
खुद के लाये विनास को देख कर
आँसू बहाते .सहम जाते ,
सकुचाते से बैठ जाते
एक कोने में .....
चुपचाप |
चुपचाप?
क्या सच मैं ?
नहीं ......वे बैठे बैठे ही फूलते रहते ,
गुब्बारे की तरह |
फिर बिना पंखों के ही उड़ने लगते
मन के आकाश पर |
झूमते लहराते नाचते कूदते
धमा चोकडी मचाते खुशी से फूले न समाते
और ...फूलते फूलते .....फट जाते ...फटाक ..|
लाल पीले होते ,हात लहराते
,उंगली दिखाते
उलाहने .. आरोप.... प्रत्यारोप ...नजाने क्या क्या |
अरे... अरे ...भाई रुको ...रुको तनिक
तुम भी कुछ आराम करो
और मुझे भी सोने दो |
ख़म खः ..नीद खराब कर दी |
विचारों का यह मेला कभी कभी अजीब सा भी लगता है लेकिन होता बहुत अच्छा है। शायद विचारों के होने से ही हम सही मायने मे मनुष्य हैं।
ReplyDeleteसादर
विचारो को ...शब्द रूप में ढालना ...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteविचारो की उथल पुथल को बहुत खूबसूरती से उकेरा है।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना आभार
ReplyDeletevichaaro ke mele ko bahut sundar sajaayaa hai...
ReplyDeleteविचार न थकते हैं न सोते हैं ... सपनों में भी साथ होते हैं ...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने । अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteममता जी नमस्कार, सुन्दर भाव आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है।
ReplyDeleteविचार व्यक्ति के जीवन की पूंजी हैं जो हमेशा ही उसे उर्जावान बनाये रखते हैं ...!
ReplyDeleteममता जी,
ReplyDeleteविचार न थकते है न सोते है
सपनो में साथ होते है,..
खुबशुरत भाव पूर्ण पोस्ट...
मेरे नए पोस्ट पर आइये स्वागत है ..