हे जगदीश्वर |
हे मर्यादा पुरुषोत्तम |
हे करुणानिधान /
ये कैसा बनाया ?
अग्निपरीक्षा का विधान /
कैसे किया ?
सीता को बेघर /
क्यों ? किया
शंका का वरण
तुम्हारे इसी विधान का
कई कर रहे है ,
अनुसरण /
रोज कई सीतायें
होती हैं बेघर /
आश्रय की तलाश में
भटकतीं है ,
दर दर /
और बिडम्बना है,
ये आज की /
कि , आप से तो कई हैं /
पर अब नहीं है
कोई भी " बाल्मीकि ''......
हे मर्यादा पुरुषोत्तम |
हे करुणानिधान /
ये कैसा बनाया ?
अग्निपरीक्षा का विधान /
कैसे किया ?
सीता को बेघर /
क्यों ? किया
शंका का वरण
तुम्हारे इसी विधान का
कई कर रहे है ,
अनुसरण /
रोज कई सीतायें
होती हैं बेघर /
आश्रय की तलाश में
भटकतीं है ,
दर दर /
और बिडम्बना है,
ये आज की /
कि , आप से तो कई हैं /
पर अब नहीं है
कोई भी " बाल्मीकि ''......
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