रेत के महल सा ढह गया वो सपना /
जो मैंने देखा था
अधखुली आँखों से
कच्ची नींद मैं /
पथरीली नुकीली
चट्टान सी
सामने थी सच्चाई /
बेखोफ बेरहम
चिलचिलाती धूप सी /
और चढ कर
पहुचना था शिखर तक /
लहराना था
परचम भी अपनी विजय का /
चढते चढते
पैर थक गए हैं
लथपत हैं खून से /
थामकर उम्मीद का दामन
चढ रही हूँ अनवरत /
कभी तो ?
कहीं न कहीं ?
कोई मिलेगा , जो समझेगा
मेरे सपने को /
और बढाएगा अपना हाथ
मदद के लिए /
बस उसी क्षण का है इन्तजार ,
ऐसे ही किसी खास को
सोंप दूँ
दिल का टुकड़ा
मैं फिर देखती हूँ सपना एक बार /
जो मैंने देखा था
अधखुली आँखों से
कच्ची नींद मैं /
पथरीली नुकीली
चट्टान सी
सामने थी सच्चाई /
बेखोफ बेरहम
चिलचिलाती धूप सी /
और चढ कर
पहुचना था शिखर तक /
लहराना था
परचम भी अपनी विजय का /
चढते चढते
पैर थक गए हैं
लथपत हैं खून से /
थामकर उम्मीद का दामन
चढ रही हूँ अनवरत /
कभी तो ?
कहीं न कहीं ?
कोई मिलेगा , जो समझेगा
मेरे सपने को /
और बढाएगा अपना हाथ
मदद के लिए /
बस उसी क्षण का है इन्तजार ,
ऐसे ही किसी खास को
सोंप दूँ
दिल का टुकड़ा
मैं फिर देखती हूँ सपना एक बार /
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