तपिश मोसम की ऐसी है की जलने सी लगी है वो /
थी कतरा बर्फ का लेकिन पिघलने सी लगी है वो /
न जाने कितने अरमां है खुली बेचेन नजरों मैं /
निगाहों के ये मनसूबे समझने सी लगी है वो /
यहाँ आबाद महफिल है मगर फिर भी है वो तनहा /
न जाने किस की चाहत मैं बदलने सी लगी है वो /
पिघल कर बर्फ का कतरा बनी छोटा सा एक दरिया /
मिलेगी अब समंदर से सफर करने लगी है वो /
नई दुनियाँ मिली उसको समंदर की लहर बन कर /
किनारों से लिपटने को मचलने सी लगी है वो /
थी कतरा बर्फ का लेकिन पिघलने सी लगी है वो /
न जाने कितने अरमां है खुली बेचेन नजरों मैं /
निगाहों के ये मनसूबे समझने सी लगी है वो /
यहाँ आबाद महफिल है मगर फिर भी है वो तनहा /
न जाने किस की चाहत मैं बदलने सी लगी है वो /
पिघल कर बर्फ का कतरा बनी छोटा सा एक दरिया /
मिलेगी अब समंदर से सफर करने लगी है वो /
नई दुनियाँ मिली उसको समंदर की लहर बन कर /
किनारों से लिपटने को मचलने सी लगी है वो /
वाह तन्हाई का सुन्दर चित्रण है!
ReplyDelete