ओड़ कर चादर दुखों की
चिंताओं के बोझ की ,
चल रहा है आदमी /
ओर अंतस मैं सुलगती
दंभ की इस आग मैं,
जल रहा है आदमी /
दाह की पीड़ा भयंकर
टीस मन मैं झेलता ,
पल रहा है आदमी /
जाने किसकी चाह है ?
चाह मैं जिसकी निरंतर ,
गल रहा है आदमी /
मोहनी मीठी जुबां से
जाल सब्दों के बिछा ,
छल रहा है आदमी /
भावनाये हैं तिरोहित
होले होले यन्त्र मैं ,
ढल रहा है आदमी /
तन हुआ बूढा बहुत तो
अपने ही घर द्वार को ,
खल रहा है आदमी /
वक्त की ठोकर लगी तो
हडबडा कर आँख अपनी ,
मल रहा है आदमी /
चिंताओं के बोझ की ,
चल रहा है आदमी /
ओर अंतस मैं सुलगती
दंभ की इस आग मैं,
जल रहा है आदमी /
दाह की पीड़ा भयंकर
टीस मन मैं झेलता ,
पल रहा है आदमी /
जाने किसकी चाह है ?
चाह मैं जिसकी निरंतर ,
गल रहा है आदमी /
मोहनी मीठी जुबां से
जाल सब्दों के बिछा ,
छल रहा है आदमी /
भावनाये हैं तिरोहित
होले होले यन्त्र मैं ,
ढल रहा है आदमी /
तन हुआ बूढा बहुत तो
अपने ही घर द्वार को ,
खल रहा है आदमी /
वक्त की ठोकर लगी तो
हडबडा कर आँख अपनी ,
मल रहा है आदमी /
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