Friday, 4 November 2011

माँ तेरे जाने के बाद

माँ  तेरे    जाने    के   बाद  ,
एक   दिन  मैं  ,
घर   गई   थी  /
गाँव    सूना   सा   लगा ,
सुनसान   सी   तेरी 
गली    थी  /
मौन   तेरे   द्वार   पर ,
वो  नीम   की  ,
डाली    खड़ी   थी /
बीच  वाली   माटी   की ,
दीवार   थी  जो  ,
बिन   तेरे   बीमार  सी  ,
बिखरी  पड़ी  थी /
बंद  थी  खिडकी  सभी ,
 और  द्वार  भी /
राह   तकती   द्वार  पर  ,
अब  तू   न  थी /
माँ   तेरे  जाने   के  बाद ..........

झाँकने   जब   मैं  लगी  ,
वो  द्वार  ,खुद  ही   खोल  कर
वो   मेरे  बचपन  का
आँगन   ,
मिलने   आया   दौड  कर /
दूर   कोने  में   खड़ी  थी  ,
अब  भी   मेरी  स्मृति  /
मोंती,   माला , कुछ   किताबें ,
गंध  सी   सोंधी   बसी /
एक   आले  मैं   पड़े  थे  कुछ ,
पुराने   से  दिए  ,
तेल  देती  बातियों   को ,
रौशनी   सी  तू   न  थी /
माँ  तेरे   जाने   के  बाद .........

घूर  कर  ये  पौर  भी  ,
मुझको  लगी  अब ताकने  /
बाद  मुद्दत   कौन ? आया ,
मेरे    अंदर  झाँकने /
हो वही  तुम  लाडली  ?जो थी ,
कभी   खेली  यहाँ  /
अब  बताओ   पास  आकार  ,
थी   अभी   तक  ,
तुम  कहाँ  ?
इतने  दिन  तक  याद  क्या  ?
तुमको   कभी  आई  नहीं /
व्याह  कर  जो  तुम  गई  तो ,
लोट   कर  आई  नहीं /
ओठ  पर  ढेरों  उलाहने  ,
आँख  मैं  उसके  नमी  थी /
माँ तेरे  जाने के बाद .......
जोड़  कर  छाती  ह्रदय  से  ,
पाट  चक्की  के  मिले  /
आँखों  ही  आँखों  मैं कुछ ,
उसने किये  सिक वे  गिले/
थाप  हल्दी  के  पुराने  थे ,
  अभी  भी  भीत  पर /
भारी  मन  से  जो  लगाये  थे ,
विदा  कि  रीत  पर /
हाथ  गालों   पर  टिकाये ,
कह  रही  थी  ओखली  /
आ गई ? मेरी  सहेली ,
नटखटी  सी  चुलबुली /
थी वही तुलसी ,वही लोटा  दिया ,
और  आरती  /
जल  चढाती   ओटले मैं  ,
तू  न थी /

माँ  तेरे  जाने  के  बाद .......



 

1 comment:

  1. माँ और यह रचना माँ के जाने के बाद .. दोनों ही बहुत दिल से लिखी गयी रचनाएँ हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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