माँ तेरे जाने के बाद ,
एक दिन मैं ,
घर गई थी /
गाँव सूना सा लगा ,
सुनसान सी तेरी
गली थी /
मौन तेरे द्वार पर ,
वो नीम की ,
डाली खड़ी थी /
बीच वाली माटी की ,
दीवार थी जो ,
बिन तेरे बीमार सी ,
बिखरी पड़ी थी /
बंद थी खिडकी सभी ,
और द्वार भी /
राह तकती द्वार पर ,
अब तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद ..........
झाँकने जब मैं लगी ,
वो द्वार ,खुद ही खोल कर
वो मेरे बचपन का
आँगन ,
मिलने आया दौड कर /
दूर कोने में खड़ी थी ,
अब भी मेरी स्मृति /
मोंती, माला , कुछ किताबें ,
गंध सी सोंधी बसी /
एक आले मैं पड़े थे कुछ ,
पुराने से दिए ,
तेल देती बातियों को ,
रौशनी सी तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद .........
घूर कर ये पौर भी ,
मुझको लगी अब ताकने /
बाद मुद्दत कौन ? आया ,
मेरे अंदर झाँकने /
हो वही तुम लाडली ?जो थी ,
कभी खेली यहाँ /
अब बताओ पास आकार ,
थी अभी तक ,
तुम कहाँ ?
इतने दिन तक याद क्या ?
तुमको कभी आई नहीं /
व्याह कर जो तुम गई तो ,
लोट कर आई नहीं /
ओठ पर ढेरों उलाहने ,
आँख मैं उसके नमी थी /
माँ तेरे जाने के बाद .......
जोड़ कर छाती ह्रदय से ,
पाट चक्की के मिले /
आँखों ही आँखों मैं कुछ ,
उसने किये सिक वे गिले/
थाप हल्दी के पुराने थे ,
अभी भी भीत पर /
भारी मन से जो लगाये थे ,
विदा कि रीत पर /
हाथ गालों पर टिकाये ,
कह रही थी ओखली /
आ गई ? मेरी सहेली ,
नटखटी सी चुलबुली /
थी वही तुलसी ,वही लोटा दिया ,
और आरती /
जल चढाती ओटले मैं ,
तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद .......
एक दिन मैं ,
घर गई थी /
गाँव सूना सा लगा ,
सुनसान सी तेरी
गली थी /
मौन तेरे द्वार पर ,
वो नीम की ,
डाली खड़ी थी /
बीच वाली माटी की ,
दीवार थी जो ,
बिन तेरे बीमार सी ,
बिखरी पड़ी थी /
बंद थी खिडकी सभी ,
और द्वार भी /
राह तकती द्वार पर ,
अब तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद ..........
झाँकने जब मैं लगी ,
वो द्वार ,खुद ही खोल कर
वो मेरे बचपन का
आँगन ,
मिलने आया दौड कर /
दूर कोने में खड़ी थी ,
अब भी मेरी स्मृति /
मोंती, माला , कुछ किताबें ,
गंध सी सोंधी बसी /
एक आले मैं पड़े थे कुछ ,
पुराने से दिए ,
तेल देती बातियों को ,
रौशनी सी तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद .........
घूर कर ये पौर भी ,
मुझको लगी अब ताकने /
बाद मुद्दत कौन ? आया ,
मेरे अंदर झाँकने /
हो वही तुम लाडली ?जो थी ,
कभी खेली यहाँ /
अब बताओ पास आकार ,
थी अभी तक ,
तुम कहाँ ?
इतने दिन तक याद क्या ?
तुमको कभी आई नहीं /
व्याह कर जो तुम गई तो ,
लोट कर आई नहीं /
ओठ पर ढेरों उलाहने ,
आँख मैं उसके नमी थी /
माँ तेरे जाने के बाद .......
जोड़ कर छाती ह्रदय से ,
पाट चक्की के मिले /
आँखों ही आँखों मैं कुछ ,
उसने किये सिक वे गिले/
थाप हल्दी के पुराने थे ,
अभी भी भीत पर /
भारी मन से जो लगाये थे ,
विदा कि रीत पर /
हाथ गालों पर टिकाये ,
कह रही थी ओखली /
आ गई ? मेरी सहेली ,
नटखटी सी चुलबुली /
थी वही तुलसी ,वही लोटा दिया ,
और आरती /
जल चढाती ओटले मैं ,
तू न थी /
माँ तेरे जाने के बाद .......
माँ और यह रचना माँ के जाने के बाद .. दोनों ही बहुत दिल से लिखी गयी रचनाएँ हैं ... अच्छी प्रस्तुति
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