Wednesday 25 January 2012

प्रजा तंत्र

मैं   पूछ  रही  दिल्ली  तुझ से,                  गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ
 ये  प्रजा  तंत्र  अब  चला  कहाँ ?  

सच्चाई   पर   हैं   सौ   पहरे
बेईमानी का  कोई  जिक्र  नहीं |
पल  रहा  ह्रदय  में  भ्रष्ट  तंत्र ,
अपनों   की   कोई  फिक्र  नहीं |

बस फिक्र सदा है निज हित की ,
इतिहास  घिनोना  रचा    यहाँ |
मैं  पूछ  रही  दिल्ली    तुझसे ,
ये प्रजा तंत्र  अब चला   कहाँ ?

जिस   सिहासन  पर  बैठे हो
  ये   शायद   तुमको  याद  नहीं |
ये  ताज   हमीं  ने  पहनाया
वर्ना  कोई    औकात    नहीं |

पर  रुको  तनिक  ठहरो  देखो ,
सब पोल  तुम्हारी  खुली  यहाँ |
मैं  पूछ  रही  दिल्ली  तुझ से ,
ये  प्रजा  तंत्र  अब चला  कहाँ ?

 पहले  शब्दों   के  हेर   फेर ,
फिर  सम्मोहन  के  वादे   हैं  |
पर  तुमको सारा  जग    जाने ,
कैसे     नापाक   इरादे   हैं |

हर  बात   तुम्हारी   घातों  की,
छल छिद्र  कपट सब पला  यहाँ |
मैं  पूछ  रही   दिल्ली   तुझसे ,
ये प्रजा  तंत्र  अब  चला   कहाँ ?

         ममता  बाजपेई



21 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण अच्छी रचना,..प्रभावी पंक्तियाँ...

    WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण अच्छी रचना,प्रभावी पंक्तिया|


    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....

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  3. जिस सिहासन पर बैठे हो
    ये शायद तुमको याद नहीं |
    ये ताज हमीं ने पहनाया
    वर्ना कोई औकात नहीं
    बेहतरीन रचना ,गणतंत्र की हार्दिक शुभकामनायें

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  4. पहले शब्दों के हेर फेर ,
    फिर सम्मोहन के वादे हैं |
    पर तुमको सारा जग जाने ,
    कैसे नापाक इरादे हैं |
    Ekdam Sateek .....

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  5. हैं प्रश्न आपके आपके बहुत सही,
    उत्तर न पाकर दुख होता।
    हो गया कैद क्या संसद में,
    यह प्रजातंत्र अपना रोता।
    जन जन की पीड़ा कविता में,
    तो सहज ढ़ंग से मुखरित है;
    छः दशक हुये आजादी को,
    फिर भी भारत यह सोता है।
    कृपया इसे भी पढ़े-
    क्या यह गणतंत्र है?
    क्या यही गणतंत्र है

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  6. सच्चाई पर हैं सौ पहरे
    बेईमानी का कोई जिक्र नहीं |
    पल रहा ह्रदय में भ्रष्ट तंत्र ,
    अपनों की कोई फिक्र नहीं ...

    सच कह है आज गणतंत्र बस कुछ लोगों का तंत्र बन के हो रह गया है ...
    सार्थक चिंतन ...

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  7. बहुत ही अच्छी रचना है! और वास्तविकता का वर्णन भी, सौंदर्य के साथ!

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  8. netaa nahee abhinetaa
    baithe hein dilli mein
    badhiyaa rachna

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  9. सार्थक रचना...
    कमेन्ट में विलम्ब के लिए क्षमा..
    शुभकामनाएँ.

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  10. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।

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  11. बसंत पंचमी की शुभकामनायें

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  12. भावपूर्ण अच्छी रचना.

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  13. बहुत ख़ूबसूरत एवं मनमोहक रचना! बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  14. बहुत सुंदर भाव रचना अच्छी लगी.,लाजबाब पोस्ट
    welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

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  15. vaah..bahut khoob...vastvikta ko darshati aapki rachna bahut pasand aayi.

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    1. बहुत सुन्दर सृजन, बधाई.

      कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" पर पधार कर मेरे प्रयास को भी अपने स्नेह से अभिसिंचित करें, आभारी होऊंगा.

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  16. सार्थक एवं भावपूर्ण प्रस्तुति... बधाई.

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  17. छलछिद्र कपट ही पल रहे हैं । प्रजातंत्र तो लुप्त है । सुंदर आंखे खोलने वाली रचना ।

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  18. पहले शब्दों के हेर फेर ,
    फिर सम्मोहन के वादे हैं |
    पर तुमको सारा जग जाने ,
    कैसे नापाक इरादे हैं |

    ....बहुत सारगर्भित और सार्थक रचना...शब्दों और भाव का बहुत सुंदर संयोजन...

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  19. आपकी चेतावनी बता रही है कि प्रजा जागरूक है और प्रजातंत्र को सही दिशा में ले जाएगी.

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