किनारे
बांधे रहे नदी को
पर ये कभी नहीं कहा .की .
ठहर जाओ
नदी भी बहती रही
छू छू कर उन्हें.....
अपनी बूंदों से
बुझाती रही उनकी प्यास
वैसे प्यासी तो
वह भी थी
पर किस से कहती ?
नदी
और प्यासी !!
कोई विस्वास करेगा ?
ममता
बांधे रहे नदी को
पर ये कभी नहीं कहा .की .
ठहर जाओ
नदी भी बहती रही
छू छू कर उन्हें.....
अपनी बूंदों से
बुझाती रही उनकी प्यास
वैसे प्यासी तो
वह भी थी
पर किस से कहती ?
नदी
और प्यासी !!
कोई विस्वास करेगा ?
ममता