जब भोर हुई
सूरज निकला ,
नभ मे फैली
वो अरुणाई |
टेसू महके ,
,चिडियाँ चहकें ,
धरती पर छाई तरुनाई |
सर पर गागर ले,
जल भरने |
चल पड़ी गुजरिया ,
बल खाती |
ये शीतल मंद
पवन बहती ,
और डाल डाल
को छू जाती
लो चाक चला ,
कच्ची मिटटी
लिपटी कुम्हार के
हाथों मे |
आकार मिला,
बन गयी दिया ,
जलने को
काली रातों मे |
काँधे पर हल
लेकर किसान ,
बैलों के बंधन
खोल रहा |
बज रहीं घंटियाँ
छनन छनन ,
स्वर गलियारे मे
डोल रहा |
सरसों की कलियाँ
झूम रहीं ,
पीले रंग की
चादर ओढ़े |
भवरों की गुनगुन
स्वर लहरी ,
कानों मे मीठा रस घोले |
सूरज की परछाई जल मे ,
रंग झिलमिल झिल मिल
घोल रही |
सतरंगी किरने कानों मे ,
कुछ गुपचुप गुपचुप
बोल रहीं|
तुम भाप बनो
और उड़ जाओ ,
पहुचो नभ की
ऊंचाई पर |
फिर बादल की
बौछार लिए ,
छम से बरसो
इस धरती पर |
नदियों मे पानी
तुम भर दो |
इस धारा को
धानी तुम कर दो |
धीरे धीरे लाओ बसंत,
ये सुबह सुहानी
तुम कर दो |
ममता
बहुत बढ़िया,भाव पुर्ण अच्छी प्रस्तुति,.....
ReplyDeleteMY NEW POST...आज के नेता...
भोर का सौन्दर्य और उसके क्रियाकलाप .... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteनदियों मे पानी
ReplyDeleteतुम भर दो |
इस धारा को
धानी तुम कर दो |
धीरे धीरे लाओ बसंत,
ये सुबह सुहानी
तुम कर दो |
भोर की बेला ..और ये सौंदर्य से लदा वर्णन ...मनमोहक ...महक महक रुक गया मन ....!!
बधाई एवं शुभकामनायें ...ममता जी ....
सुबह का बहुत भावपूर्ण और सुंदर शब्द चित्र...
ReplyDeleteभोर का सुंदर वर्णन ... और सार्थक संदेश देती अच्छी रचना
ReplyDeleteसुन्दर बिम्ब, मन को शान्त कर देने वाले अहसास लिये हुये शब्द.!
ReplyDeletebahut shandar bhor ka chitran kiya hai bahut achcha bimb bana hai rachna me.
ReplyDeleteसुंदर चित्रण ....बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteखूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
अति सुन्दर, मनभावन व भावपूर्ण कविता... बधाई.
ReplyDeletebahut sundar chitran
ReplyDeleteyadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahte hain to sampark karen
ReplyDeleterasprabha@gmail.com
सरसों की कलियाँ
ReplyDeleteझूम रहीं ,
पीले रंग की
चादर ओढ़े |
भवरों की गुनगुन
स्वर लहरी ,
कानों मे मीठा रस घोले |
सुंदर रचना.....