Wednesday 10 October 2012

तर्पण


जो  इस   दुनियाँ   में  नहीं  हैं  अब ,
उनका    हम   करते    हैं  तर्पण
लेकिन    जो घर  में   जीवित  हैं ,
एकाकी   पन     से   पीड़ित   हैं
उनका   कोई    सम्मान     नहीं ,
रखता   अब   कोई   ध्यान  नहीं
अभिशप्त   सा   जीवन   जीते  हैं ,
वे  सदा    ही   गुम   सुम रहते हैं
उनके   अपने   ही  कभी   कभी,
 घर  से   बेघर   भी  करते  हैं
वृधाश्रम    की   दीवारों   में  ,
 ऐसे    ही   जीवन   पलते  हैं
फिर   दुनियाँ   दारी  की  खातिर ,
करते   हैं    हम   उनका  तर्पण
आशीषों    से   झोली   भर   के ,
हल्का   कर   लेते  अपना   मन
बस ...इतना   सा   हम  कर लेते ,
जीते   जी   उनको   सुख   देते|
सम्मान   उन्हें   करते    अर्पण ,
सच्चा    तब    हो  जाता  तर्पण |

15 comments:

  1. सत्य को उद्घाटित करती रचना .... बहुत मर्मस्पर्शी

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  2. दिखावा आसान लगता है

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  3. आप के इन विचारों से मैं शतप्रतिशत सहमत हूँ...बहुत सच्ची और अच्छी बात लिखी है आपने...

    नीरज

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  4. बस ...इतना सा हम कर लेते ,
    जीते जी उनको सुख देते|
    सम्मान उन्हें करते अर्पण ,
    सच्चा तब हो जाता तर्पण |

    जीते जी उनको सुख नहीं देते
    इसीका प्रायश्चित करते है शायद वर्ष में एक दिन ...
    सार्थक रचना है ...आभार !

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  5. दिल को छू लेने वाली रचना....

    सादर
    अनु

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  6. आज के परिप्रेक्ष्य में एक सार्थक और उम्दा रचना |

    सादर नमन |

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  7. सार्थक सुंदर मन को छूती रचना,,,,,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,

    MY RECENT POST: माँ,,,

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  8. सटीक .... सार्थक और विचारणीय पंक्तियाँ

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  9. सटीक .... सार्थक और विचारणीय पंक्तियाँ

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  10. हाँ, सिर्फ दुनियादारी की खातिर...

    सादर
    मधुरेश

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  11. आज के यथार्थ का बहुत सार्थक और मर्मस्पर्शी चित्रण...आभार

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  12. बहुत खूब ...सत्य पर आधारित

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  13. भाव प्रवण रचना ..

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  14. भाव प्रवण रचना ..

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  15. सत्य कहती भावप्रद रचना...

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