Friday, 19 October 2012

कितने शातिर हैं हम


बना कर एक
प्रस्तर की प्रतिमा
पूजते हैं हम उसे ,
हो कर श्रद्धावनत
माँगते हैं वरदान
और वो,
भर देती है झोलियाँ आशीषों से
वो ,होती है
हमारी आराध्य कुलदेवी रक्षक ...........
झुकाते हैं शीश
हो जाते हैं तृप्त दर्शन मात्र से
लेकिन ,
जब वो धर कन्या का रूप
स्थापित होती है
गर्भ में
तब ,बड़ी निष्ठुरता से
खरोंच फेंकते हैं उसे
बाहर .........
कहीं कोई स्थान नहीं उसका
न मन में न घर में
और हम फिर से
मशगूल हो जाते हैं
श्रद्धा के अभिनय में
कितने शातिर हैं हम !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

12 comments:

  1. aur insan apni is shatirta ko khatam bhi nahi karna chaahta kaisi vidambana hai.

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  2. इतने शातिर कि भगवान् को भी धोखा देकर चलते हैं !

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  3. लेकिन ,
    जब वो धर कन्या का रूप
    स्थापित होती है
    गर्भ में
    तब ,बड़ी निष्ठुरता से
    खरोंच फेंकते हैं उसे
    बाहर .........
    कहीं कोई स्थान नहीं उसका
    न मन में न घर में
    और हम फिर से
    मशगूल हो जाते हैं
    श्रद्धा के अभिनय में
    कितने शातिर हैं हम !!!!!!!!उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम

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  4. सटीक कही है बात ...बहुत सुन्दर !

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  5. उत्कृष्ट प्रस्तुति....

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  6. वाकई ...
    मंगल कामनाएं आपको !

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  7. विजय दशमी की शुभ कामनाएं ...

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  8. ये कडुवी सचाई है समाज की ... उसके दोगलेपन की ...
    शशक्त प्रभावी रचना ...

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  9. बहुत सही,यहीं विडम्बना है और जिम्मेदार हमारे बीच ही बैठा हो सकता है

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