Saturday, 27 October 2012

शब्द


 शब्द जो करते  हैं
आहत
रहते हैं महफूज ता उम्र
स्मृतियों के पिटारे में .........
ठुक जाते हैं
कील की तरह
मन की कोमल दीवार पर
और उन्हीं  कीलों  पर
टंग  जाती हैं
तार तार हुई भावनाएं
बेबस से हम
करते रहते हैं प्रयास
इन तारों को  जोड़ने का
छिपा कर दर्द
अलापने लगते हैं
फिर से नया राग
पर ...
मन के एक कोने में
 सिसकती रहती हैं
भावनाएं
सुप्त हो जाता है निनाद
रह जाते हैं केवल  शब्द
जो कर गए थे
  आहत

ममता

15 comments:

  1. मन के एक कोने में
    सिसकती रहती हैं
    भावनाएं
    सुप्त हो जाता है निनाद
    रह जाते हैं केवल शब्द
    जो कर गए थे
    आहत .... स्पर्शित अनुभव

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  2. शत्रु-शस्त्र से सौ गुना, संहारक परिमाण ।
    शब्द-वाण विष से बुझे, मित्र हरे झट प्राण ।
    मित्र हरे झट प्राण, शब्द जब स्नेहसिक्त हों ।
    जी उठता इंसान, भाव से रहा रिक्त हो ।
    हे विदुषी आभार, चित्र यह बढ़िया खींचा ।
    शब्दों का जल-कोष, मरुस्थल को भी सींचा ।।

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  3. बढिया कोशिश

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  4. छिपा कर दर्द
    अलापने लगते हैं
    फिर से नया राग
    पर ...मन के एक कोने में
    सिसकती रहती हैं
    भावनाएं...
    कोमल भावपूर्ण रचना...

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  5. सुप्त हो जाता है निनाद
    रह जाते हैं केवल शब्द
    जो कर गए थे
    आहत.

    सही शब्दों का सही प्रयोग का महत्त्व समझाती सुंदर कविता.

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,,

    शब्द शक्ति है,शब्द भाव है.
    शब्द सदा अनमोल,
    शब्द बनाये शब्द बिगाडे.
    तोल मोल के बोल,,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  7. बहुत सुन्दर रचना |
    मेरे ब्लॉग में भी पधारें |

    मेरा काव्य-पिटारा

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  8. शब्द जो करते हैं
    आहत
    रहते हैं महफूज ता उम्र
    स्मृतियों के पिटारे में .........
    ठुक जाते हैं
    कील की तरह
    मन की कोमल दीवार पर
    और उन्हीं कीलों पर
    टंग जाती हैं
    तार तार हुई भावनाएं
    मन को छूते शब्‍द ... कोमल अभिव्‍यक्ति

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  9. कष्ट देने वाले सोंचते नहीं ...

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  10. shabd se hi to sansar hai..sundar post..

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  11. हर शब्द लाजवाब हैं। प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  12. सच कहा है ... आहट करने वाले शब्द ही याद रहते हैं ... इसलिए मीठे शब्दों की कितनी जरूरत है जीवन में ये समझना बहुत जरूरी है ...
    सचेत करती है आपकी रचना ...

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  13. बहुत सुंदर . शुभकामनायें !
    कभी यहाँ भी पधारें

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