Thursday 17 November 2011

अंजुरी   मैं  भरे
,तर्पण  के जल जैसा ,
है ये जीवन |
जो टपकता है ,बूंद बूंद ,
नीचे  की ओर  रिसता हुआ |
हर बूंद  एक
साँस  की तरह ,
जो हवा मैं बिखरती है और
हो जाती है विलीन
शून्य  मैं |

टिप टिप गिरती बूंदों  से ,
नजाने कितने
बुझाते है अपनी प्यास |
ले कर तृप्ति
चल देते है अपने अपने रास्ते   |
कोई भी नहीं देखता ,
अंजुरी  का
पलपल ...रीतना ,
जब तक बूंद है ,
तभी  तक है अंजुरी के मायने |
जब खाली हुई तो,
 सब कुछ बेमानी |
वाह रे  ..स्वार्थ
क्या ? तेरा कोई अंत नहीं .....|

8 comments:

  1. जब तक बूंद है ,
    तभी तक है अंजुरी के मायने |
    जब खाली हुई तो,
    सब कुछ बेमानी |
    वाह रे ..स्वार्थ
    क्या ? तेरा कोई अंत नहीं .....|

    स्वार्थ का कभी कोई अंत हो भी नहीं सकता बल्कि सही मायने मे स्वार्थ पर ही दुनिया टिकी हुई है।

    हर जगह तो दिखता है स्वार्थ।

    अंजुरी के खाली होने में भी स्वार्थ है ;एक चीज़ से खाली होगी तभी तो दूसरी चीज़ आएगी।


    सादर

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  2. बहुत ही सुन्दर बिम्ब का प्रयोग!

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  3. भावनाए जीवन को व्यक्त करती ......बहुत ही सुन्दर सृजन!

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  4. कोई भी नहीं देखता ,
    अंजुरी का
    पलपल ...रीतना ,
    जब तक बूंद है ,
    तभी तक है अंजुरी के मायने |
    जब खाली हुई तो,
    सब कुछ बेमानी |
    वाह रे ..स्वार्थ ...swarth ke siwa kuch bhi nahi

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  5. सुंदर बिंब के माध्यम से अपनी बात कही आपने।

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  6. अंजुरी मैं भरे..अंजुरी में भरे।

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  7. ममता जी, आपकी कविता बहुत अच्छी है। इसमें आपने जीवन को एक नये अंदाज में प्रस्तुत किया है। पर कविता अंत में कहीं खटकती है।

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  8. बेहद खुबसूरत लिखा है.

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