मैं उम्र भर लड़ती रही ,
बेटा बेटी का अंतर मिटाने के लिए |
थाम कर हाथ मे परचम ,
करती रही नेतृत्व समानता का |
लेकिन वही अंतर खड़ा है ,
आज मेरे द्वार पर ढीट बन के ,
कह रहा है तुम लड़की वाले हो ........
बेटा बेटी का अंतर मिटाने के लिए |
थाम कर हाथ मे परचम ,
करती रही नेतृत्व समानता का |
लेकिन वही अंतर खड़ा है ,
आज मेरे द्वार पर ढीट बन के ,
कह रहा है तुम लड़की वाले हो ........
waah ..bahut khub
ReplyDeletesunder shabd.....sunder bhaw.....
ReplyDeleteduniya gol hai ... aur yahi satya rahne diya gaya hai
ReplyDeleteबहुत कुछ बदल कर भी नहीं बदला है ..... विडंबना तो यही है
ReplyDeleteआज भी लोगो की सोच नही बदली...ये कब तक चलेगा..?
ReplyDeleteमुश्किल तो है, पर उम्मीद है कि यह अंतर मिटेगा।
ReplyDeleteकुछ समय लगेगा, अंतर मिटेगा - सटीक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत सही
ReplyDeleteसादर
bahut khub :) bahut hi achchi rachna
ReplyDeletewelcome to my blog :)
हर लड़के वाला, लड़की वाला और हर लड़की वाला,लड़के वाला होता है। फिर भी दुनिया तो दुनिया है..............
ReplyDeleteयह समस्या सनातन है. इसे दूर करने के लिए समाज अभी पूरी तरह से शिक्षित नहीं हुआ है.
ReplyDeleteप्रयास ज़ारी रखना होगा ... तभी अन्तर मिटेगा ..
ReplyDeletedate rahiye apne hath par kabhi to vo hath chhodenge. :)
ReplyDeleteयह समस्या आज भी बरकरार है,इसे दूर करने के लिए हमे आपको सोचना होगा,.....सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक स्वागत है "काव्यान्जलि" मे
सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है ! पता नहीं इस समस्या का हल कब होगा !
ReplyDeleteक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
सहज और सटीक व्यंग्य स्थिति से खुद बा खुद रिश्ता हुआ .
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