Sunday, 30 October 2011

आतंकबाद

भुलाये    भूलता   नहीं   वो   बीती    रात    का     मंजर  /
सिसकियाँ   खून  और  चीखों   भरे   हालत   का   मंजर  /

कहीं    जलते   हैं   चोराहे    कही    गलियारे   जलते   हैं  /
जला   कर   बस्तियां   सारी   सजाया   राख   का  मंजर  /

जिधर   देखो   उदासी   है   ये   कैसा   खोफ   का   आलम   /
डरी    बेबस   निगाहों   मैं   धडकती    साँस   का   मंजर   /

घुली   बारूद   पानी   मैं   बही   हैं    आग    की    नदियाँ  /
टपकती  आँख   से   आंसू   के  इस    हालत  का   मंजर  /

कहीं   मंदिर   कहीं   मस्जिद   कही   अरदास   होती   है /
धर्म   के   नाम   पर   चलते   हुए   व्यापर   का    मंजर  /

खुदा   की    जुस्तजू    उनको    खुदी   से  दूर   रहते   हैं  /
बसी  हैं   नफरते  दिल   मैं   सुलगता   आग  का   मंजर   /

1 comment:

  1. कहीं मंदिर कहीं मस्जिद कही अरदास होती है /
    धर्म के नाम पर चलते हुए व्यापर का मंजर /

    खुदा की जुस्तजू उनको खुदी से दूर रहते हैं /
    बसी हैं नफरते दिल मैं सुलगता आग का मंजर /

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए सादर आभार |अपने एक मुक्तक के द्वारा कहना चाहूँगा

    नफरतें मत करो इतना की कत्ले आम हो जाये |
    शराफत हो भी कुछ ऐसी देश के काम आ जाये ||
    शहीदों ने लुटाई जिन्दगी तेरे चमन खातिर |
    तेरे जजबो लहू में फिर से हिंदुस्तान हो जाये ||

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