रिश्तों की जमीन
सींची जाती है जब
प्रेम की कोमलभावनाओं से
जोती जाती है
अपनत्व के हल से
डाला जाता है बीज
विस्वास का
तब निश्चित ही
फूटता है अंकुर
अपार संभावनाओं का
पनपता है अटूट रिश्ता
नन्हे नन्हे दो पत्ते
बन जाते है प्रतीक
अमर प्रेम के
लहलहाती है संबंधों की फसल
फिर वो रिश्ता कोई सा भी हो
खूब निभता है
पर आज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल प्रेम
अपत्व
भरोसा
हर चहरे पर एक मुखोटा
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
पर कभी जब
हो जाता है सामना विपत्ति से
तब यही लोग
थामने लगते है रिश्तों की लाठी
गिरगिट की तरह रंग बदलते है ये
ढीट होते हैं
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते
औरों को
दरकते रिश्तों के लिए
और खुद हाथ झाड़ कर
दूर खड़े हो जाते
मासूम बन कर
ममता
सींची जाती है जब
प्रेम की कोमलभावनाओं से
जोती जाती है
अपनत्व के हल से
डाला जाता है बीज
विस्वास का
तब निश्चित ही
फूटता है अंकुर
अपार संभावनाओं का
पनपता है अटूट रिश्ता
नन्हे नन्हे दो पत्ते
बन जाते है प्रतीक
अमर प्रेम के
लहलहाती है संबंधों की फसल
फिर वो रिश्ता कोई सा भी हो
खूब निभता है
पर आज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल प्रेम
अपत्व
भरोसा
हर चहरे पर एक मुखोटा
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
पर कभी जब
हो जाता है सामना विपत्ति से
तब यही लोग
थामने लगते है रिश्तों की लाठी
गिरगिट की तरह रंग बदलते है ये
ढीट होते हैं
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते
औरों को
दरकते रिश्तों के लिए
और खुद हाथ झाड़ कर
दूर खड़े हो जाते
मासूम बन कर
ममता
दुनियावी सच्चाईयों को खूब लिखा है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.. आभार..
ReplyDeleteसुंदर रचना.....
ReplyDeleteकितना मुश्किल है
ReplyDeleteनिश्छल प्रेम
अपत्व
भरोसा....
अंतर्मन....
आज के यथार्थ की बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteरिश्तों की जमीन को उर्वरा बनाये रखने के लिये स्नेह सिंचन अति आवश्यक है । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteरिश्तों का आधार निश्छल और निस्वार्थ प्रेम ही है ,और सब ऊपरी दिखावा.
ReplyDeleteआज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल प्रेम
अपनत्व
भरोसा
हर चहरे पर एक मुखौटा
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
सच्चाई है आज की
अभिशप्त हैं अभी रिश्ते !
आदरणीया ममता बाजपेई जी
भावपूर्ण कविता के लिए साधुवाद !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
waah dil ko jhakjhorti rachna ...
ReplyDeleteआज के इस दौर में सटीक लगी आपकी रचना !
ReplyDeleteयही है रिश्तों की ओट से ली गई स्वार्थ की रीत। मेरा पेट हाऊ ,मैं न जानूँ काऊ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...
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