Monday, 3 December 2012

रिश्तों की जमींन


रिश्तों  की जमीन
सींची  जाती है जब
 प्रेम की  कोमल भावनाओं  से
जोती जाती है
अपनत्व के हल से
डाला जाता है बीज
विस्वास का
तब निश्चित ही
 फूटता है  अंकुर
अपार संभावनाओं का
पनपता है अटूट रिश्ता
नन्हे नन्हे  दो पत्ते
बन  जाते हैं  प्रतीक
अमर प्रेम के ....
लहलहाती है संबंधों की फसल
फिर वो रिश्ता  कोई  सा भी हो
खूब निभता है
पर आज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल  प्रेम
अपत्व
भरोसा
हर चहरे पर  एक मुखोटा
फायदा  नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
पर कभी जब
 हो जाता है सामना विपत्ति से
तब यही लोग
थामने लगते है रिश्तों की लाठी
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं  ये
ढीट होते हैं
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते
औरों को
दरकते रिश्तों के लिए
और खुद हाथ झाड़ कर
दूर खड़े हो जाते
मासूम बन  कर

ममता

15 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  2. खुद हाथ झाड़ कर
    दूर खड़े हो जाते
    मासूम बन कर
    बहुत सही कहा है आपने इन पंक्तियों में
    सादर

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  3. रिश्तों के जमीन को, सींचों तुम बस प्यार से ।
    अटूट-सा रिश्ता बन जाता, दोस्त से हो या यार से ।।

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  4. फास्ट-फूड के दौर में , डिब्बे मानो खेत
    प्रेम - भूमि बंजर हुई , रिश्ते - नाते रेत
    रिश्ते - नाते रेत , महक वह सोंधी खोई
    मन की बगिया बेल,विषैली नित नित बोई
    बन कर एक रोबोट , भटकते बिना मूड के
    सब सुख मटियामेट , दौर में फास्ट-फूड के ||

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  5. मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही ...

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    1. जी हाँ संगीता जी मुझे भी नहीं दिखी ....कारण पता नहीं
      देखती हूँ

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  6. कुछ बेजोड से रिश्ते

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  7. sahi may aajkal aise hi log milte hain jyadatar....par kuch acche bhi hote hain rishte nibhane wale.....bahut sundar aur satik likha hai apne

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  8. बहुत ही सुन्दर कविता..

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  9. सही है आजका यथार्थ यही है !

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  10. रि‍श्‍ते भी वाक़ई बहुत अजब ग़ज़ब होते हैं

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  11. क्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.

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  12. बहुत खूब...कुछ रिश्तों के नाम होते हैं और कुछ रिश्ते बस नाम के लिए होते हैं.

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  13. आज के यथार्थ को सही रूप दिया है आपने । शुभकामनाएँ । सस्नेह

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