रिश्तों की जमीन
सींची जाती है जब
प्रेम की कोमल भावनाओं से
जोती जाती है
अपनत्व के हल से
डाला जाता है बीज
विस्वास का
तब निश्चित ही
फूटता है अंकुर
अपार संभावनाओं का
पनपता है अटूट रिश्ता
नन्हे नन्हे दो पत्ते
बन जाते हैं प्रतीक
अमर प्रेम के ....
लहलहाती है संबंधों की फसल
फिर वो रिश्ता कोई सा भी हो
खूब निभता है
पर आज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल प्रेम
अपत्व
भरोसा
हर चहरे पर एक मुखोटा
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
पर कभी जब
हो जाता है सामना विपत्ति से
तब यही लोग
थामने लगते है रिश्तों की लाठी
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं ये
ढीट होते हैं
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते
औरों को
दरकते रिश्तों के लिए
और खुद हाथ झाड़ कर
दूर खड़े हो जाते
मासूम बन कर
ममता
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteखुद हाथ झाड़ कर
ReplyDeleteदूर खड़े हो जाते
मासूम बन कर
बहुत सही कहा है आपने इन पंक्तियों में
सादर
रिश्तों के जमीन को, सींचों तुम बस प्यार से ।
ReplyDeleteअटूट-सा रिश्ता बन जाता, दोस्त से हो या यार से ।।
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
फास्ट-फूड के दौर में , डिब्बे मानो खेत
ReplyDeleteप्रेम - भूमि बंजर हुई , रिश्ते - नाते रेत
रिश्ते - नाते रेत , महक वह सोंधी खोई
मन की बगिया बेल,विषैली नित नित बोई
बन कर एक रोबोट , भटकते बिना मूड के
सब सुख मटियामेट , दौर में फास्ट-फूड के ||
मेरी टिप्पणी नहीं दिख रही ...
ReplyDeleteजी हाँ संगीता जी मुझे भी नहीं दिखी ....कारण पता नहीं
Deleteदेखती हूँ
कुछ बेजोड से रिश्ते
ReplyDeletesahi may aajkal aise hi log milte hain jyadatar....par kuch acche bhi hote hain rishte nibhane wale.....bahut sundar aur satik likha hai apne
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता..
ReplyDeleteसही है आजका यथार्थ यही है !
ReplyDeleteरिश्ते भी वाक़ई बहुत अजब ग़ज़ब होते हैं
ReplyDeleteअनुपम ....
ReplyDeleteक्या बात है...वाह!! शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत खूब...कुछ रिश्तों के नाम होते हैं और कुछ रिश्ते बस नाम के लिए होते हैं.
ReplyDeleteआज के यथार्थ को सही रूप दिया है आपने । शुभकामनाएँ । सस्नेह
ReplyDelete