उठा तूलिका चित्रकार ने
वर्तमान का चित्र लिखा
समझ सको तो समझो मित्रों
दर्द कौन सा वहाँ दिखा
एक चित्र में उच्च शिखर पर
झूठ पसर कर बैठा था
सत्य ठगा सा एक कोने में
एकाकी सा बैठा था
लालच की अंधी गलियों में
गुम होता ईमान दिखा
एक चित्र में एक भिखारिन
बार बार तन ढांक रही
लेकिन उम्र बगावत करके
चिथड़ों मे से झाँक रही
तार तार होता नजरों से
लज्जा का अभिमान दिखा
एक चित्र में पावन सरिता
मलिन पड़ी थी निर्बल सी
कभी लबालब थी जो जल से
दिखी आज वो मरुथल सी
कूल कछार पर्ण वृक्षों का
मौन रुदन सा गान दिखा
एक चित्र में लोग बो रहे
बीज यहाँ मीनारों के
अंकुर फूट रहे धरती में
खिडकी और दीवारों के
आवासों की बलिबेदी पर
खेतों का बलिदान दिखा
एक चित्र में आग पेट की
धू धू करके धधक रही
निर्धनता उसके चरणों में
भूकी प्यासी सिसक रही
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
स्वर्ण रजत का दान दिखा
ममता
एक चित्र में आग पेट की
ReplyDeleteधू धू करके धधक रही
निर्धनता उसके चरणों में
भूकी प्यासी सिसक रही
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
स्वर्ण रजत का दान दिखा
कड़वी सच्चाई बयां करती तस्वीरें ...
बहुत सुंदर रचना ... साभार !!
एक चित्र में लोग बो रहे
ReplyDeleteबीज यहाँ मीनारों के
अंकुर फूट रहे धरती में
खिडकी और दीवारों के
आवासों की बलिबेदी पर
खेतों का बलिदान दिखा,,,,
बर्तमान की हकीकत बयाँ करती सुंदर रचना
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
bahut jwalant chitr hain.....
ReplyDeleteprabhaavshali rachna.
वाह ममताजी ...नि:शब्द कर दिया आपकी रचना ने .....बहुत ही सुन्दर ...दिल को छू गयी ...छू क्या झंझोड़ गयी
ReplyDeleteअनगिनत चित्र ... बेबाक सत्य
ReplyDeleteजिन मुद्दों को आपने छुआ है वह सारे ज्वलंत हैं. और उनका चित्रण भी सुन्दरता से किया गया है. कृति के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteएक चित्र में आग पेट की
ReplyDeleteधू धू करके धधक रही
निर्धनता उसके चरणों में
भूकी प्यासी सिसक रही
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
स्वर्ण रजत का दान दिखा
गहन भावों के साथ सच लिख दिया आपने ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
dil ko chhote hue sabhi chitra ...
ReplyDeletesundar rachna ...
चित्रकार की कलम ने आज का सच ही लिखा है ... मार्मिक मनाग भयावह सच ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना है ...
बहुत खूब...........
ReplyDeleteआज का आगरा
ReplyDeletebahut hi marmik....
ReplyDeleteएक चित्र में एक भिखारिन
ReplyDeleteबार बार तन ढांक रही
लेकिन उम्र बगावत करके
चिथड़ों मे से झाँक रही
तार तार होता नजरों से
लज्जा का अभिमान दिखा...................पूरी कविता की जान हैं ये पंक्तियाँ
बहुत खूब
एक चित्र में एक भिखारिन
ReplyDeleteबार बार तन ढांक रही
लेकिन उम्र बगावत करके
चिथड़ों मे से झाँक रही
तार तार होता नजरों से
लज्जा का अभिमान दिखा..
बेहतरीन पंक्तियाँ ,,, सुंदर रचना,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
तार तार होता नजरों से
ReplyDeleteलज्जा का अभिमान दिखा
यह रचना प्रभावशाली है ..
आभार आपका !
जिन ज्वलंत प्रश्नों को आपकी शब्द-तूलिका ने उकेरा है वे आज की मानवता पर उभरे विकृत धब्बे हैं !
ReplyDeleteकटु सत्य बताती बहुत
ReplyDeleteही मार्मिक रचना....
उत्कृष्ट .....
बहुत खूब ! एक एक पंक्ति कटु यथार्थ को चित्रित करती दिल को छू जाती है...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति....
ReplyDeleteएक चित्र में आग पेट की
ReplyDeleteधू धू करके धधक रही
निर्धनता उसके चरणों में
भूकी प्यासी सिसक रही
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
स्वर्ण रजत का दान दिखा
kya likhu ?????? etana sundar ki tarif ke shabd nahi hain.
वाह!
ReplyDeleteचित्रकार तो धन्य हो गया होगा अपनी आर्ट गैलरी में आपको पा कर। कभी आपके काव्य चित्र को कभी अपने चित्रों को देख सोच रहा होगा कि कौन श्रेष्ठ हैं!!
वर्तमान हालातों को दर्शाते शब्दों का सुन्दर चित्रांकन..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है..
सादर,
मधुरेश