Wednesday, 6 June 2012


उठा  तूलिका  चित्रकार  ने
 वर्तमान  का  चित्र  लिखा
समझ सको तो समझो मित्रों
दर्द  कौन  सा  वहाँ  दिखा

एक चित्र में  उच्च शिखर पर
 झूठ  पसर   कर  बैठा  था
सत्य  ठगा  सा एक कोने में
एकाकी   सा   बैठा   था
लालच  की  अंधी गलियों में
गुम   होता   ईमान   दिखा

एक चित्र में  एक भिखारिन
 बार  बार  तन  ढांक  रही
लेकिन  उम्र  बगावत  करके
चिथड़ों  मे  से   झाँक  रही
तार  तार  होता  नजरों  से
लज्जा  का  अभिमान दिखा

एक  चित्र  में  पावन सरिता
मलिन  पड़ी  थी  निर्बल सी
कभी  लबालब थी जो जल से
दिखी  आज  वो  मरुथल सी
कूल  कछार  पर्ण  वृक्षों का
मौन  रुदन  सा  गान दिखा

एक  चित्र  में  लोग बो  रहे
बीज   यहाँ   मीनारों    के
अंकुर  फूट  रहे  धरती   में
खिडकी   और  दीवारों   के
आवासों  की  बलिबेदी   पर
खेतों   का  बलिदान  दिखा

एक  चित्र  में आग पेट की
धू  धू  करके  धधक   रही
निर्धनता  उसके  चरणों  में
भूकी  प्यासी  सिसक   रही
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
स्वर्ण रजत का  दान  दिखा

ममता

21 comments:

  1. एक चित्र में आग पेट की
    धू धू करके धधक रही
    निर्धनता उसके चरणों में
    भूकी प्यासी सिसक रही
    प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
    स्वर्ण रजत का दान दिखा

    कड़वी सच्चाई बयां करती तस्वीरें ...
    बहुत सुंदर रचना ... साभार !!

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  2. एक चित्र में लोग बो रहे
    बीज यहाँ मीनारों के
    अंकुर फूट रहे धरती में
    खिडकी और दीवारों के
    आवासों की बलिबेदी पर
    खेतों का बलिदान दिखा,,,,

    बर्तमान की हकीकत बयाँ करती सुंदर रचना

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  3. वाह ममताजी ...नि:शब्द कर दिया आपकी रचना ने .....बहुत ही सुन्दर ...दिल को छू गयी ...छू क्या झंझोड़ गयी

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  4. अनगिनत चित्र ... बेबाक सत्य

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  5. जिन मुद्दों को आपने छुआ है वह सारे ज्वलंत हैं. और उनका चित्रण भी सुन्दरता से किया गया है. कृति के लिए धन्यवाद.

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  6. एक चित्र में आग पेट की
    धू धू करके धधक रही
    निर्धनता उसके चरणों में
    भूकी प्यासी सिसक रही
    प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
    स्वर्ण रजत का दान दिखा
    गहन भावों के साथ सच लिख दिया आपने ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार

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  7. dil ko chhote hue sabhi chitra ...
    sundar rachna ...

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  8. चित्रकार की कलम ने आज का सच ही लिखा है ... मार्मिक मनाग भयावह सच ...
    लाजवाब रचना है ...

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  9. एक चित्र में एक भिखारिन
    बार बार तन ढांक रही
    लेकिन उम्र बगावत करके
    चिथड़ों मे से झाँक रही
    तार तार होता नजरों से
    लज्जा का अभिमान दिखा...................पूरी कविता की जान हैं ये पंक्तियाँ

    बहुत खूब

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  10. एक चित्र में एक भिखारिन
    बार बार तन ढांक रही
    लेकिन उम्र बगावत करके
    चिथड़ों मे से झाँक रही
    तार तार होता नजरों से
    लज्जा का अभिमान दिखा..

    बेहतरीन पंक्तियाँ ,,, सुंदर रचना,,,,, ,

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

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  11. तार तार होता नजरों से
    लज्जा का अभिमान दिखा

    यह रचना प्रभावशाली है ..
    आभार आपका !

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  12. जिन ज्वलंत प्रश्नों को आपकी शब्द-तूलिका ने उकेरा है वे आज की मानवता पर उभरे विकृत धब्बे हैं !

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  13. कटु सत्य बताती बहुत
    ही मार्मिक रचना....
    उत्कृष्ट .....

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  14. बहुत खूब ! एक एक पंक्ति कटु यथार्थ को चित्रित करती दिल को छू जाती है...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति....

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  15. एक चित्र में आग पेट की
    धू धू करके धधक रही
    निर्धनता उसके चरणों में
    भूकी प्यासी सिसक रही
    प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख
    स्वर्ण रजत का दान दिखा

    kya likhu ?????? etana sundar ki tarif ke shabd nahi hain.

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  16. वाह!
    चित्रकार तो धन्य हो गया होगा अपनी आर्ट गैलरी में आपको पा कर। कभी आपके काव्य चित्र को कभी अपने चित्रों को देख सोच रहा होगा कि कौन श्रेष्ठ हैं!!

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  17. वर्तमान हालातों को दर्शाते शब्दों का सुन्दर चित्रांकन..
    बहुत ही सुन्दर रचना है..
    सादर,
    मधुरेश

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