कुछ भावनाएँ
जोड़ कर ,
भर लिया मन का आँगन ,
प्यारे प्यारे शब्दों से |
जिनके मायने मैंने गढे थे ,
अपनी खुशी के लिए |
उन्हें पढ़ पढ़ कर
खूब झूमीं नाची |
जी भर कर मनाया उत्सब |
कुछ शब्दों को
'' वो ''
रख गया था मेरे
मन के द्वार पर ,
मखमली लिबाश मे
लपेट कर |
और मैंने जी लिए ,
जीवन के कुछ पल ,
उनके सहारे |
पर तोड़ कर जब ,
मखमली आवरण
कुछ शब्द निकले ,
तीखे नश्तर से
जा लगे
सीधे दिल पर
और बह निकली धारा ,
आँखों के
कटोरों से
नहला दिया
गालों को
सिमट गईं
भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |
ममता
ममताजी ...ओस सी नाज़ुक ....आपकी कविता छू गयी अंत:स को ......और टीसती हुई ढुलक गयी ....हथेलियों पर कुछ निशाँ ..कुछ अहसास छोडती ....
ReplyDeleteवाह.................
ReplyDeleteमनोव्यथा का सुकोमल वर्णन .............
बहुत खूब.
गालों को
ReplyDeleteसिमट गईं भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह,
सुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
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बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteman ki baat ko khoobsurti se prastut karne ka ye andaaz aapse seekhna padega.
ReplyDeleteकुछ भावनाएँ
ReplyDeleteजोड़ कर ,
भर लिया मन का आँगन ,
प्यारे प्यारे शब्दों से |
जिनके मायने मैंने गढे थे ,
अपनी खुशी के लिए |
उन्हें पढ़ पढ़ कर
खूब झूमीं नाची |
जी भर कर मनाया उत्सब |bahut sundar utsav
सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteघाव भरे नहीं जा सकते ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
शब्द कभी सुकून देते हैं तो कभी तीर की तरह भेद जाते हैं ... बहुत खूबसूरती से भावों को सँजोया है ...
ReplyDeleteगहरे एहसास के साथ गुंथे हुवे शब्दों का असर बाखूबी अंजाम दे रहा है इस लाजवाब रचना को ... बहुत उम्दा ....
ReplyDeleteसिमट गईं
ReplyDeleteभावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |
अनुपम भाव संयोजन ।
मन में प्रभाव करता.. सुन्दर रचना ..शुभकामनायें..
ReplyDeleteकुछ भावनाएँ
ReplyDeleteजोड़ कर ,
भर लिया मन का आँगन ,
प्यारे प्यारे शब्दों से |
जिनके मायने मैंने गढे थे ,
अपनी खुशी के लिए |
उन्हें पढ़ पढ़ कर
खूब झूमीं नाची |
जी भर कर मनाया उत्सब |
सुंदर रचना....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
कविता का कथ्य, शिल्प और बिम्ब आकर्षित करते हैं।
ReplyDeleteकुछ शब्द निकले ,
ReplyDeleteतीखे नश्तर से
जा लगे
सीधे दिल पर
यह चलाये तीर कई बार घातक होते हैं ....
शुभकामनायें आपको !
जहाँ छाँह तहँ धूप है, जहाँ रंक तहँ भूप
ReplyDeleteजहाँ दिवस तहँ रात है, जीवन के दो रूप.
गूढ़ रचना, वाह !!!!!
बहुत सुन्दर कविता |
ReplyDeletevaah vaah mamta ji vaastvikta ka dharatal jab jameen par lakar rakh deta hai tab harday ki vyathayen aankhon se bahti hain.bahut sundar bhaav bahut achcha laga padhkar.
ReplyDeleteआँखों के
ReplyDeleteकटोरों से
नहला दिया
गालों को
सिमट गईं
भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |
अति मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
कुछ शब्दों को
ReplyDelete'' वो ''
रख गया था मेरे
मन के द्वार पर ,
मखमली लिबाश मे
लपेट कर |
बढ़िया रागात्मक भाव विह्यावल करती प्रस्तुति .
शब्दों का असर अहसासों को बाखूबी बयाँ कर रहा है
ReplyDeleteइस लाजवाब रचना के लिये बधाई.
आँखों के
ReplyDeleteकटोरों से
नहला दिया
गालों को
सिमट गईं
भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |
..bahut sundar..
बहुत ही सुन्दर,,बेहतरीन भावमयी रचना...
ReplyDeleteआँखों के
ReplyDeleteकटोरों से
नहला दिया
गालों को
सिमट गईं
भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह,
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति //
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जिनके मायने मैंने गढे थे ,
ReplyDeleteअपनी खुशी के लिए |
उन्हें पढ़ पढ़ कर
खूब झूमीं नाची |
जी भर कर मनाया उत्सब |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
सिमट गईं
ReplyDeleteभावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |..........ममता जी बहुत ही कोमल भाव और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
गीली ओस सी मुलायम भावनाएं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष" पर आपकी प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद
ReplyDeleteनहला दिया
ReplyDeleteगालों को
सिमट गईं
भावनाएँ
उँगलियों के पोरों पर
गीली ओस की तरह |
अतिसुंदर भावनात्मक प्रस्तुति !!