Tuesday 10 April 2012

गीली ओस की तरह


कुछ भावनाएँ
जोड़  कर ,
भर   लिया   मन   का  आँगन ,
प्यारे   प्यारे  शब्दों  से  |
जिनके   मायने  मैंने   गढे  थे  ,
अपनी खुशी के लिए |
उन्हें  पढ़ पढ़  कर
 खूब झूमीं  नाची |
जी भर  कर मनाया  उत्सब |

कुछ  शब्दों को
 '' वो ''
रख गया था  मेरे
 मन के द्वार पर ,
मखमली  लिबाश    मे
  लपेट  कर |
और  मैंने  जी  लिए  ,
जीवन  के  कुछ  पल ,
उनके   सहारे |
पर  तोड़   कर जब ,
मखमली  आवरण
कुछ  शब्द  निकले ,
 तीखे   नश्तर   से
जा  लगे
 सीधे  दिल  पर
और    बह  निकली धारा ,
आँखों   के
  कटोरों   से
नहला   दिया
 गालों  को
सिमट   गईं  
भावनाएँ
 उँगलियों   के  पोरों   पर
गीली ओस की तरह |

ममता


29 comments:

  1. ममताजी ...ओस सी नाज़ुक ....आपकी कविता छू गयी अंत:स को ......और टीसती हुई ढुलक गयी ....हथेलियों पर कुछ निशाँ ..कुछ अहसास छोडती ....

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  2. वाह.................
    मनोव्यथा का सुकोमल वर्णन .............

    बहुत खूब.

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  3. गालों को
    सिमट गईं भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह,
    सुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....

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  4. बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  5. man ki baat ko khoobsurti se prastut karne ka ye andaaz aapse seekhna padega.

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  6. कुछ भावनाएँ
    जोड़ कर ,
    भर लिया मन का आँगन ,
    प्यारे प्यारे शब्दों से |
    जिनके मायने मैंने गढे थे ,
    अपनी खुशी के लिए |
    उन्हें पढ़ पढ़ कर
    खूब झूमीं नाची |
    जी भर कर मनाया उत्सब |bahut sundar utsav

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  7. सुन्दर सृजन , बेहतरीन भावाभिव्यक्ति.

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  8. घाव भरे नहीं जा सकते ....
    शुभकामनायें आपको !

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  9. शब्द कभी सुकून देते हैं तो कभी तीर की तरह भेद जाते हैं ... बहुत खूबसूरती से भावों को सँजोया है ...

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  10. गहरे एहसास के साथ गुंथे हुवे शब्दों का असर बाखूबी अंजाम दे रहा है इस लाजवाब रचना को ... बहुत उम्दा ....

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  11. सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह |
    अनुपम भाव संयो‍जन ।

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  12. मन में प्रभाव करता.. सुन्दर रचना ..शुभकामनायें..

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  13. कुछ भावनाएँ
    जोड़ कर ,
    भर लिया मन का आँगन ,
    प्यारे प्यारे शब्दों से |
    जिनके मायने मैंने गढे थे ,
    अपनी खुशी के लिए |
    उन्हें पढ़ पढ़ कर
    खूब झूमीं नाची |
    जी भर कर मनाया उत्सब |

    सुंदर रचना....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  14. कविता का कथ्य, शिल्प और बिम्ब आकर्षित करते हैं।

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  15. कुछ शब्द निकले ,
    तीखे नश्तर से
    जा लगे
    सीधे दिल पर

    यह चलाये तीर कई बार घातक होते हैं ....
    शुभकामनायें आपको !

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  16. जहाँ छाँह तहँ धूप है, जहाँ रंक तहँ भूप
    जहाँ दिवस तहँ रात है, जीवन के दो रूप.

    गूढ़ रचना, वाह !!!!!

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  17. vaah vaah mamta ji vaastvikta ka dharatal jab jameen par lakar rakh deta hai tab harday ki vyathayen aankhon se bahti hain.bahut sundar bhaav bahut achcha laga padhkar.

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  18. आँखों के
    कटोरों से
    नहला दिया
    गालों को
    सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह |
    अति मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति

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  19. कुछ शब्दों को
    '' वो ''
    रख गया था मेरे
    मन के द्वार पर ,
    मखमली लिबाश मे
    लपेट कर |
    बढ़िया रागात्मक भाव विह्यावल करती प्रस्तुति .

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  20. शब्दों का असर अहसासों को बाखूबी बयाँ कर रहा है

    इस लाजवाब रचना के लिये बधाई.

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  21. आँखों के
    कटोरों से
    नहला दिया
    गालों को
    सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह |
    ..bahut sundar..

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  22. बहुत ही सुन्दर,,बेहतरीन भावमयी रचना...

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  23. आँखों के
    कटोरों से
    नहला दिया
    गालों को
    सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह,

    बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति //

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  24. जिनके मायने मैंने गढे थे ,
    अपनी खुशी के लिए |
    उन्हें पढ़ पढ़ कर
    खूब झूमीं नाची |
    जी भर कर मनाया उत्सब |

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //


    MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....

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  25. सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह |..........ममता जी बहुत ही कोमल भाव और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  26. गीली ओस सी मुलायम भावनाएं.

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  27. बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष" पर आपकी प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद

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  28. नहला दिया
    गालों को
    सिमट गईं
    भावनाएँ
    उँगलियों के पोरों पर
    गीली ओस की तरह |

    अतिसुंदर भावनात्मक प्रस्तुति !!

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