लिए गर्भ में भोर का अंकुर
रजनी से मिलने को आतुर
श्रम की लाली से आलोकित
सूर्य रश्मि पर आती संध्या
पल पल ढलती जाती संध्या
दीप जलें जब शिव आलय में
उठे नाद डमरू के स्वर में
वेद मन्त्र नभ में जब गूँजे
भक्ति भाव फैले कणकण में
तब प्रभु के पावन चरणों में
शीश झुकाए आती संध्या
स्वेद बिंदु को पौछ श्रमिक जब
अपने अपने घर को आते
कल् रब गान सुनाते पंछी
तरु की फुनगी पर आ जाते
तब पैरों में पहन के पायल
घुंगरू को छनकाती संध्या
जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
उठा के घूँघट झाँक रही हो
अलसाई बोझिल अंखियों से
प्रीतम का मुख ताक रही हो
सराबोर हो प्रेम रंग में
दुलहन सी शर्माती संध्या
जीवन पथ के अंतिम क्षण में
एकाकी जब मन हो जाता
थकित जीर्ण काय को ढोता
स्मृतियों के दीप जलाता
चला चली की इस बेला में
निष्ठुर सी हो जाती संध्या
ममता
सूर्य रश्मि पर आती संध्या
ReplyDeleteपल पल ढलती जाती संध्या..सुंदर पंक्तियाँ
अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना.....
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
ReplyDeleteउठा के घूँघट झाँक रही हो
अलसाई बोझिल अंखियों से
प्रीतम का मुख ताक रही हो
सराबोर हो प्रेम रंग में
दुलहन सी शर्माती संध्या
अदभुत सौन्दर्य , लाज लालिमायुक्त
bahut hi pyaari rachna hai,bdhiya shbdon se sjaya bhi hai aap ne ise,bdhaai aap ko
ReplyDeleteदीप जलें जब शिव आलय में
ReplyDeleteउठे नाद डमरू के स्वर में
वेद मन्त्र नभ में जब गूँजे
भक्ति भाव फैले कणकण में
तब प्रभु के पावन चरणों में
शीश झुकाए आती संध्या
सुंदर रचना.....
बहुत सुंदर शब्दों का संयोजन बधाई
ReplyDeleteजीवन पथ के अंतिम क्षण में
ReplyDeleteएकाकी जब मन हो जाता
थकित जीर्ण काय को ढोता
स्मृतियों के दीप जलाता
चला चली की इस बेला में
निष्ठुर सी हो जाती संध्या
जीवन को रौशन करती हैं स्मृतियाँ..... सुंदर रचना
जीवन पथ के अंतिम क्षण में
ReplyDeleteएकाकी जब मन हो जाता
थकित जीर्ण काय को ढोता
स्मृतियों के दीप जलाता
चला चली की इस बेला में
निष्ठुर सी हो जाती संध्या
.....बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना...
जीवन के विभिन्न आयामों को संध्या से जोड़ के बेजोड रचना की उत्पत्ति की है ...
ReplyDeleteचित्र भी लाजवाब है ...
अंकुर से लेकर चला चली की बेला तक एक संध्या का सफ़र इस कविता में है. सुंदर बिंबों के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteजीवन पथ के अंतिम क्षण में
ReplyDeleteएकाकी जब मन हो जाता
थकित जीर्ण काय को ढोता
स्मृतियों के दीप जलाता
चला चली की इस बेला में
निष्ठुर सी हो जाती संध्या //
sunder hai mamta jee.../
holi ki badhaii,..
mere bhi blog par aaye/
NICE DEVOTINAL LINES WITH DEEP EXPRESSIONS
ReplyDeleteजीवन पथ के अंतिम क्षण में
ReplyDeleteएकाकी जब मन हो जाता
थकित जीर्ण काय को ढोता
स्मृतियों के दीप जलाता
चला चली की इस बेला में
निष्ठुर सी हो जाती संध्या
Kitna sach hai ye!
"Meree Ladlee" pe aapka comment padha! Afsos to ye hai ki,bitiya maa banna hee nahee chahtee!
bahut sundar sandhya ka bimb prastut kiya hai aapne bahut hi umda.
ReplyDeleteसंध्या सुंदरी का नख शिख वर्णन , अद्भुत .
ReplyDeleteबेहद उम्दा !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...
बेहद खुबसूरत व प्रभावी रचना|
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।
आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteनए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है
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जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
ReplyDeleteउठा के घूँघट झाँक रही हो
अलसाई बोझिल अंखियों से
प्रीतम का मुख ताक रही हो
सराबोर हो प्रेम रंग में
दुलहन सी शर्माती संध्या
bahut hi sundar rachana bajpai ji .....prkriti saundary ki adbhud chhata .....badhai sweekaren . holi pr subh kamnaayen.
जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
ReplyDeleteउठा के घूँघट झाँक रही हो
अलसाई बोझिल अंखियों से
प्रीतम का मुख ताक रही हो
सराबोर हो प्रेम रंग में
दुलहन सी शर्माती संध्या
bahut hi sundar rachana ....prakriti saundary ki adbhud chhata bikherati hui rachana ke liye apko badhai ....holi pr subhkamnayen
.
ReplyDeleteजैसे कोई स्वप्न सुंदरी
उठा के घूंघट झांक रही हो
अलसाई बोझिल अंखियों से
प्रीतम का मुख ताक रही हो
सराबोर हो प्रेम रंग में
दुल्हन - सी शर्माती संध्या
आहाऽऽहाऽऽऽ… बहुत सुंदर रचना है …
इस मनोहारी सांध्य गीत के लिए आभार बधाई !
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ReplyDelete~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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आपको होली की अनेकों शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteसादर.