Sunday, 26 February 2012

संध्या

लिए  गर्भ में भोर का अंकुर 
रजनी से मिलने को आतुर 
श्रम की लाली से आलोकित 
सूर्य  रश्मि पर आती संध्या
पल  पल ढलती जाती संध्या

दीप जलें जब शिव आलय में
उठे     नाद  डमरू के  स्वर में 
वेद  मन्त्र  नभ में जब गूँजे 
भक्ति भाव फैले  कणकण में 
तब  प्रभु के पावन चरणों में 
शीश    झुकाए  आती संध्या  

स्वेद बिंदु को पौछ  श्रमिक जब
 अपने   अपने   घर   को   आते  
कल्  रब   गान   सुनाते    पंछी  
तरु   की  फुनगी  पर  आ जाते 
तब   पैरों  में  पहन  के  पायल   
घुंगरू   को  छनकाती  संध्या  
  
जैसे    कोई     स्वप्न     सुंदरी    
उठा   के  घूँघट  झाँक  रही  हो    
अलसाई    बोझिल  अंखियों से     
प्रीतम   का  मुख  ताक रही हो   
सराबोर    हो    प्रेम   रंग    में     
 दुलहन    सी   शर्माती   संध्या    

जीवन  पथ  के  अंतिम  क्षण  में   
एकाकी   जब   मन   हो   जाता     
थकित    जीर्ण  काय   को  ढोता      
स्मृतियों    के     दीप   जलाता       
 चला   चली   की   इस  बेला में      
निष्ठुर   सी   हो   जाती  संध्या 

ममता                                   




24 comments:

  1. सूर्य रश्मि पर आती संध्या
    पल पल ढलती जाती संध्या..सुंदर पंक्तियाँ
    अति उत्तम,सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना.....

    NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

    ReplyDelete
  2. जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
    उठा के घूँघट झाँक रही हो
    अलसाई बोझिल अंखियों से
    प्रीतम का मुख ताक रही हो
    सराबोर हो प्रेम रंग में
    दुलहन सी शर्माती संध्या
    अदभुत सौन्दर्य , लाज लालिमायुक्त

    ReplyDelete
  3. bahut hi pyaari rachna hai,bdhiya shbdon se sjaya bhi hai aap ne ise,bdhaai aap ko

    ReplyDelete
  4. दीप जलें जब शिव आलय में
    उठे नाद डमरू के स्वर में
    वेद मन्त्र नभ में जब गूँजे
    भक्ति भाव फैले कणकण में
    तब प्रभु के पावन चरणों में
    शीश झुकाए आती संध्या

    सुंदर रचना.....

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर शब्दों का संयोजन बधाई

    ReplyDelete
  6. जीवन पथ के अंतिम क्षण में
    एकाकी जब मन हो जाता
    थकित जीर्ण काय को ढोता
    स्मृतियों के दीप जलाता
    चला चली की इस बेला में
    निष्ठुर सी हो जाती संध्या

    जीवन को रौशन करती हैं स्मृतियाँ..... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  7. जीवन पथ के अंतिम क्षण में
    एकाकी जब मन हो जाता
    थकित जीर्ण काय को ढोता
    स्मृतियों के दीप जलाता
    चला चली की इस बेला में
    निष्ठुर सी हो जाती संध्या

    .....बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  8. जीवन के विभिन्न आयामों को संध्या से जोड़ के बेजोड रचना की उत्पत्ति की है ...
    चित्र भी लाजवाब है ...

    ReplyDelete
  9. अंकुर से लेकर चला चली की बेला तक एक संध्या का सफ़र इस कविता में है. सुंदर बिंबों के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  10. जीवन पथ के अंतिम क्षण में
    एकाकी जब मन हो जाता
    थकित जीर्ण काय को ढोता
    स्मृतियों के दीप जलाता
    चला चली की इस बेला में
    निष्ठुर सी हो जाती संध्या //
    sunder hai mamta jee.../
    holi ki badhaii,..
    mere bhi blog par aaye/

    ReplyDelete
  11. NICE DEVOTINAL LINES WITH DEEP EXPRESSIONS

    ReplyDelete
  12. जीवन पथ के अंतिम क्षण में
    एकाकी जब मन हो जाता
    थकित जीर्ण काय को ढोता
    स्मृतियों के दीप जलाता
    चला चली की इस बेला में
    निष्ठुर सी हो जाती संध्या
    Kitna sach hai ye!

    "Meree Ladlee" pe aapka comment padha! Afsos to ye hai ki,bitiya maa banna hee nahee chahtee!

    ReplyDelete
  13. bahut sundar sandhya ka bimb prastut kiya hai aapne bahut hi umda.

    ReplyDelete
  14. संध्या सुंदरी का नख शिख वर्णन , अद्भुत .

    ReplyDelete
  15. बेहद उम्दा !

    ReplyDelete
  16. बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

    NEW POST...फिर से आई होली...
    NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

    ReplyDelete
  17. बेहद खुबसूरत व प्रभावी रचना|

    ReplyDelete
  18. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
    इंडिया दर्पण की ओर से होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  19. आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं

    नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है

    नई पोस्ट

    स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी
    razrsoi.blogspot.com

    ReplyDelete
  20. जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
    उठा के घूँघट झाँक रही हो
    अलसाई बोझिल अंखियों से
    प्रीतम का मुख ताक रही हो
    सराबोर हो प्रेम रंग में
    दुलहन सी शर्माती संध्या

    bahut hi sundar rachana bajpai ji .....prkriti saundary ki adbhud chhata .....badhai sweekaren . holi pr subh kamnaayen.

    ReplyDelete
  21. जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
    उठा के घूँघट झाँक रही हो
    अलसाई बोझिल अंखियों से
    प्रीतम का मुख ताक रही हो
    सराबोर हो प्रेम रंग में
    दुलहन सी शर्माती संध्या
    bahut hi sundar rachana ....prakriti saundary ki adbhud chhata bikherati hui rachana ke liye apko badhai ....holi pr subhkamnayen

    ReplyDelete
  22. .

    जैसे कोई स्वप्न सुंदरी
    उठा के घूंघट झांक रही हो
    अलसाई बोझिल अंखियों से
    प्रीतम का मुख ताक रही हो
    सराबोर हो प्रेम रंग में
    दुल्हन - सी शर्माती संध्या

    आहाऽऽहाऽऽऽ… बहुत सुंदर रचना है …

    इस मनोहारी सांध्य गीत के लिए आभार बधाई !

    ReplyDelete
  23. **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
    *****************************************************************
    ♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
    ♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    *****************************************************************
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
    **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**

    ReplyDelete
  24. आपको होली की अनेकों शुभकामनाएँ...
    सादर.

    ReplyDelete