Friday 11 November 2011

प्राण प्रतिष्ठा

तेरे  भक्तों को   देखा,
आज मैंने  मंदिर मैं /
प्रतिष्ठित  कर  रहे  थे ,
वे  प्राण  तुझ मैं /
डुबा कर  दुग्ध जल घी  मैं
अनेको  पुष्प अन्नो से
तुझे  वे ढक  रहे थे
गजानन,  शिव, शिवा ,
माँ  शारदा ,नव गृह ,
सभी मे प्राण  वे
 भर रहे थे
तेरे  सारे स्वरूपों की ,
प्रतिष्ठा  कर रहे थे /

मगर
मैं  सोचती  हूँ /
किसी  मैं  प्राण  भरना ,
 यहाँ मानव  के वस्  मैं है ?
तो फिर , तेरा वजूद  क्या ?
अगर  तू है  जगत व्यापी ,
तो प्राण  किस  मैं डालना ?
ये बात  सब से,
 गर कहूँ मैं ,तो
क्या  नास्तिक  कहलाऊँगी ?
मगर
मैं  लाख चाहू भी ,
नही मन मानता मेरा ,
कि तू केवल है
 मंदिर मैं /
या कि तू केवल है
मूरत मैं /
तुझे क्या चाह फूलों की ?
न कोई चाह ,
दधि  घी की /
''चराचर '' है
जगत का जो,
भरेंगे '' प्राण '' हम कैसे ?

ओ परमेश्वर /
बता मुझ को ,
करू मैं  क्या ?
हवन   और  आरती पूजा ?
बड़ा सा भब्य  आयोजन ?
बता  सच सच ?
तुझे पाने  का
केवल
क्या यही ''मग'' है ?


22 comments:

  1. अतिसुन्दर बधाई की परिधि से बाहर ....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.

    'प्राण प्रतिष्ठा'को वैज्ञानिकता के आधार पर समझना
    पड़ेगा.'श्रद्धा' और 'विश्वास' ही सब आस्थाओं के
    मूल हैं.

    मेरे ब्लॉग पर आप आई,इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.

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  3. मगर
    मैं सोचती हूँ /
    किसी मैं प्राण भरना ,
    यहाँ मानव के वस् मैं है ?
    तो फिर , तेरा वजूद क्या ?... waah mamta ji , bahut badi baat kah di

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  4. विश्वास पर आज भी सब पूजा पाठ....और ईश्वर को पा लेने की उम्मीद है .......बेहद खूबसूरत प्रस्तुति

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  5. बहुत ही सुन्दर कविता |

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  6. आदरणीया ममता जी
    प्रणाम !


    नेट पर विचरण करते हुए आपके यहां पहुंच कर अच्छा लगा …
    कविता भी -
    ओ परमेश्वर !
    बता मुझ को , करू मैं क्या ?
    हवन और आरती पूजा ?
    बड़ा सा भब्य आयोजन ?
    बता सच सच ?

    तुझे पाने का
    केवल क्या यही ''मग'' है ?

    सुंदर रचना है …


    आपके लिए मेरा लिखा एक दोहा प्रस्तुत है -
    का'बा - काशी - क़ैद से , रब रहता आज़ाद !
    रब से मिल ले , कर उसे सच्चे दिल से याद !!


    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. बहुत खूब ...
    अलग ही अंदाज़ है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  8. क्या कहने, बहुत सुंदर
    बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  9. ''चराचर '' है
    जगत का जो,
    भरेंगे '' प्राण '' हम कैसे ?

    गहरी सोंच और दर्शन का अद्भुत संगम है आपकी यह रचना.
    आभार.

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  10. वाह वाह वाह ..गज़ब की सोच.सुन्दर रचना.

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  11. मन के भावों को बहुत खूबसूरती से लिखा है .. यह तो मानव का मात्र भ्रम है कि वो मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करता है .. मेरे मन में भी अक्सर ऐसे प्रश्न उठते हैं .. आज आपने जैसे उनको ही शब्द दे दिए हैं ... सुन्दर रचना

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  12. ओ परमेश्वर /
    बता मुझ को ,
    करू मैं क्या ?
    हवन और आरती पूजा ?
    बड़ा सा भब्य आयोजन ?
    बता सच सच ?
    तुझे पाने का
    केवल
    क्या यही ''मग'' है ?

    वाह....विचारणीय और प्रभावशाली पंक्तियाँ

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  13. bahut satik bhav prastut kiye hain...

    sawal jayaz hai aapka....

    Kabir ka ek doha hai..."Pahan puje hari mile to main pujun pahad, taate ya chaaki bhali; pis khaye sansaar"

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  15. सुंदर ,अध्यात्म से भरपूर, भावमयी रचना .....
    ये सब दृष्टिकोण है ,नज़रिया है ......,
    किसी को पत्थर में मिला,/
    किसी को मूरत में दिखा /
    कभी तपोवन में गया /
    कभी मंदिर में रहा /
    खेलता रहता है वो /
    जिसका जैसे भाव रहा /
    देखता रहता अपलक, मगर
    न कभी किसी से कुछ कहा ./
    छुप कर बैठा है वो मन में /
    जहाँ कभी न कोई गया ./........
    जहाँ कभी न कोई गया ./........(अंजू अनन्या)
    आपके ब्लॉग तक ले आने के लिए आभार नई-पुरानी हलचल का ,संगीता जी का

    सांसारिक माता पिता अपने बच्चे को स्वयं से आगे देख कर खुश होते है,गर्व करते है ,पालक बनकर ,उसे अपना रक्षक मानते हैं ,तो ईश्वर भी यही मौका अपनी रचनाओं को देता होगा ..."शायद" ......!!!!!!!!!!!!ये भी एक नज़रिया हो सकता है .,ममता जी

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  16. ''चराचर '' है
    जगत का जो,
    भरेंगे '' प्राण '' हम कैसे"

    बहुत सुन्दर बात उठाई है आपने...सचमुच हम लोग भगवान् को अपने हाथों का खिलोना मान बैठते हैं..जब की वो तो सर्व व्यापी है..लीक से हट कर चुने गए विषय पर भावपूर्ण रचना कही आपने..बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें..

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  17. गंभीर चिंतन....
    बहुत सुन्दर भाव.नया दृष्टिकोण....

    सादर बधाई

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  18. sach kaha aapne ye sab aadambar-poorn baate hain. ham use na bhi paye to kya usne hame paya hua hai...tabhi to ham sukoon se rah pate hain.

    gambheer vishlen, sunder drishtikon.

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  19. आरती पूजा कर्मकांड मात्र हैं... इनसे आगे भक्ति भाव की लंबी यात्रा है, जो वास्तम में प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा है!

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  20. गंभीर चिंतन से उपजी बहुत ही अद्भुत एवं अनुपम रचना ! सच में कितना विरोधाभास है जिस ईश्वर ने हर इंसान में प्राण भरे उसी भगवान की प्राण प्रतिष्ठा कर उसे प्राणवान बनाने का दंभ इंसान भरता है ! बहुत ही सुन्दर एवं गहन रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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