Thursday 10 November 2011

औरों पर आरोप लगाना

औरों   पर  आरोप  लगाना , 
कितना  सहज  सरल   होता   है /
बात   निराली   तो  तब   होगी ,
कोई   काम   कठिन   कर   देखो /
अपने   अंतस  मैं  तुम  झांको ,
और   खँगालो   उन   पन्नों   को  /
जहाँ   लिखे   हैं  द्वेष   द्वन्द   सब ,
मन   से   उन्हें   विलग   कर   देखो  /
क्यों   पाली   इतनी   शंकाए  ?
क्षीर   नीर   से    धवल   ह्रदय   मैं  ,
विश्वासों   के  भाव   जगा  कर  ,
जीवन   निश्छल   सा   कर   देखो  /
ये   जीवन   जितना   दुष्कर   है  ,
उतना   ही   ये   सहज   सरल   है  /
बस   लेकर    पतवार    प्रेम   की ,
सागर    पार  उतर   कर   देखो  /
चाह   नही   है   ताजमहल  की ,
दुनियाँ    की   परवाह   नहीं   है /
बस   मेरे   दिल   के  आँगन    मैं  ,
अपना   महल  बना  कर   देखो /
अपने   दुःख   मैं  सबकी   आँखे  ,
बन   जाती  सैलाब   नदी   का  /
एक  बार ,  बस   एक  बार ,  तुम 
दुःख   औरों   का  सुन  कर   देखो  /
अधरों    पर   मुस्कान   खिले  ,और
झरने   लगें   खुशी   के  मोती  ,
झूम   उठे  '' ममता ''  की    लहरें  /
ऐसी   एक   पहल   कर  देखो  /

9 comments:

  1. झूम उठे '' ममता '' की लहरें /
    ऐसी एक पहल कर देखो /

    वाह! क्या बात है!
    ममता जी आप का परिचय प्रभावित करता है!और रचनायें भाव पूर्ण हैं!

    ReplyDelete
  2. झूम उठे '' ममता '' की लहरें /
    ऐसी एक पहल कर देखो /
    wah.....kya baat hai.

    ReplyDelete
  3. http://urvija.parikalpnaa.com/2011/11/blog-post_11.html

    ReplyDelete
  4. सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  5. आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  6. भावपूर्ण कृति !
    बहुत अच्छा व सारगर्भित लिखा है आपने,बधाई !

    ReplyDelete
  7. बहुत भावपूर्ण कृति .. अच्छी लगी आपकी यह रचना ...

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर रचना ...भावपूर्ण बधाई हो

    ReplyDelete
  9. बहुत सादे मीठे शब्दों में बहुत गहरी बात.

    ReplyDelete