Sunday, 12 August 2012

पन्द्रह अगस्त


aपन्द्रह अगस्त की रात को ,
वो हाथ में  झंडा लिए
थी राजपथ  पर घूमती |

आँखों में थी बस याचना ,
और घाव छाती पर लिए ,
हर द्वार  पर वो ढूकती |

शायद कोई मिल जाए......
जो घाव पर मरहम धरे ,
अपने हिया में सोचती |

हर द्वार उससे पूछता ,
तुम कौन हो ?
क्यों आई हो?
इस राजपथ के द्वार पर |

अवरुद्ध उसके कंठ से ,
पीड़ा निकल कर झर पड़ी
फिर डगमगाए थे कदम ,
और वो जमीं पर गिर पड़ी |

तब बोली वो कराह के
तुम लाल कैसे हो मेरे ,
मुझ को नहीं पहचानते |

अन्याय से घायल हुई ,
माँ भारती हूँ आपकी
 क्यों हाथ भी ना थामते  |

फिर हाथ अपना टेक कर
पीड़ा समेटे घाव की ,
उठने लगी वो भारती |

इतिहास में अंकित
 सुतों को याद कर ,
रोने लगी वो भारती |

फिर हाथ फैला कर ,
दुआ करने लगी
 आकाश से |

तू शाक्षी है समय का ,
तू शाक्षी इतिहास का,
 तू शाक्षी बलिदान की  हर बूंद का |

उठ ,जाग फिर से
 थाम ले शमशीर  कर में ,
औ काट दे अन्याय का सर

तू काट दे टुकड़ों में
भ्रष्टाचार को, अपराध को ,
औ स्वार्थ को

वो देर तक रोती रही
आँसू से मुख धोती रही ,
पर आँख दिल्ली की भीगी नहीं |

और खून दिल्ली का खौला नहीं
आवाज दिल्ली तक पहुंची नहीं
माँ भारती के रुदन की |

तब एक बच्चे ने
पकड़ कर हाथ ,
समझाया उसे |

क्यों ब्यर्थ में रोती हो माँ ?
भटक कर रास्ता
आ गयी हो कहाँ ?

ये दिल्ली ......
अब नहीं इतिहास वाले वीरों की
ये हो चुकी पाषाण अब तो |

तो अब ये ...
बोल ,सुन  सकती नहीं
जाओ माँ ,
फिर से सींचो कोख अपनी
फिर से डालो बीज नन्हे |
या ....
हो सके तो ,
प्राण फिर से फूंक दो
पाषण  में |

ममता बाजपेई


25 comments:

  1. बहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति सच में पाषाण ही तो हो चुकी दिल्ली जिसको लोकतंत्र की आवाज भी सुनाई नहीं देती है बहुत बधाई आपको ममता जी

    ReplyDelete
  2. सच को कहती मार्मिक प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर...मन को छू गयी हर पंक्ति..
    काश के कोई जीवनदायिनी बयार चले और प्राण फूंक दे पाषाण में.
    शुभकामनाएं स्वतंत्रता दिवस की..
    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  4. तो अब ये ...
    बोल ,सुन सकती नहीं
    जाओ माँ ,
    फिर से सींचो कोख अपनी
    फिर से डालो बीज नन्हे |
    या ....
    हो सके तो ,
    प्राण फिर से फूंक दो
    पाषण में |

    बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

    ReplyDelete
  5. हृदयस्पर्शी..... सार्थक रचना

    ReplyDelete
  6. देशभक्ति का भाव जगाती कविता।

    ReplyDelete
  7. माँ भारती आज रो रही है अपने ही पुत्रों पे ... कोई उसकी गुहार नहीं सुनना चाहता ...
    स्प्चने को प्रेरित और मजबूर करती है आपकी रचना ... लाजवाब ...

    ReplyDelete

  8. सही में, पाषाण हैं सब ..
    काश इन्हें भारत माता की आह सुनाई देती !

    ReplyDelete
  9. भावमय करती प्रस्‍तुति

    कल 15/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' पन्‍द्रह अगस्‍त ''

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन अभिव्यक्ति
    स्वतंत्रता दिवस की..शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  11. क्या हम आज भी पूरी तरह से आज़ाद हैं ?????

    ReplyDelete
  12. आज के हालातों को देख भारत माँ के दुःख का मार्मिक चित्रण ..
    ऐसे हालातों में भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई स्वीकारे ...

    ReplyDelete
  13. बहुत ही बढ़िया
    स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!


    सादर

    ReplyDelete
  14. bharat maa aaj apni awastha ke liye ro rahi hai guhar sunane vala koi nahi hai...abhar

    ReplyDelete
  15. सार्थक चिंतन लिए रचना..
    बदलेंगे देश के हालात इसी आशा के साथ
    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर.............देशभक्ति का भाव प्रेरित करती है |

    ReplyDelete
  17. बहुत भावमयी प्रस्तुति ममता जी

    ReplyDelete
  18. भावमयी प्रस्तुति ममता जी बधाई

    ReplyDelete
  19. ये दिल्ली ......
    अब नहीं इतिहास वाले वीरों की
    ये हो चुकी पाषाण अब तो |

    ...कटु सत्य...बहुत सुंदर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  20. सार्थक लेख ...

    ReplyDelete
  21. Deshbhakti se bhari sundar post....maf kijiyega der se ayi yaha...

    ReplyDelete
  22. Nice.

    मानसिकता बदलने की ज़रुरत है.

    ReplyDelete
  23. देशभक्ति का भाव जगाती लाजबाब प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,

    ReplyDelete
  24. सुदर भाव के साथ सुंदर गीत। बहुत अच्छी पोस्ट। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete