aपन्द्रह अगस्त की रात को ,
वो हाथ में झंडा लिए
थी राजपथ पर घूमती |
आँखों में थी बस याचना ,
और घाव छाती पर लिए ,
हर द्वार पर वो ढूकती |
शायद कोई मिल जाए......
जो घाव पर मरहम धरे ,
अपने हिया में सोचती |
हर द्वार उससे पूछता ,
तुम कौन हो ?
क्यों आई हो?
इस राजपथ के द्वार पर |
अवरुद्ध उसके कंठ से ,
पीड़ा निकल कर झर पड़ी
फिर डगमगाए थे कदम ,
और वो जमीं पर गिर पड़ी |
तब बोली वो कराह के
तुम लाल कैसे हो मेरे ,
मुझ को नहीं पहचानते |
अन्याय से घायल हुई ,
माँ भारती हूँ आपकी
क्यों हाथ भी ना थामते |
फिर हाथ अपना टेक कर
पीड़ा समेटे घाव की ,
उठने लगी वो भारती |
इतिहास में अंकित
सुतों को याद कर ,
रोने लगी वो भारती |
फिर हाथ फैला कर ,
दुआ करने लगी
आकाश से |
तू शाक्षी है समय का ,
तू शाक्षी इतिहास का,
तू शाक्षी बलिदान की हर बूंद का |
उठ ,जाग फिर से
थाम ले शमशीर कर में ,
औ काट दे अन्याय का सर
तू काट दे टुकड़ों में
भ्रष्टाचार को, अपराध को ,
औ स्वार्थ को
वो देर तक रोती रही
आँसू से मुख धोती रही ,
पर आँख दिल्ली की भीगी नहीं |
और खून दिल्ली का खौला नहीं
आवाज दिल्ली तक पहुंची नहीं
माँ भारती के रुदन की |
तब एक बच्चे ने
पकड़ कर हाथ ,
समझाया उसे |
क्यों ब्यर्थ में रोती हो माँ ?
भटक कर रास्ता
आ गयी हो कहाँ ?
ये दिल्ली ......
अब नहीं इतिहास वाले वीरों की
ये हो चुकी पाषाण अब तो |
तो अब ये ...
बोल ,सुन सकती नहीं
जाओ माँ ,
फिर से सींचो कोख अपनी
फिर से डालो बीज नन्हे |
या ....
हो सके तो ,
प्राण फिर से फूंक दो
पाषण में |
ममता बाजपेई
बहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति सच में पाषाण ही तो हो चुकी दिल्ली जिसको लोकतंत्र की आवाज भी सुनाई नहीं देती है बहुत बधाई आपको ममता जी
ReplyDeleteसच को कहती मार्मिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...मन को छू गयी हर पंक्ति..
ReplyDeleteकाश के कोई जीवनदायिनी बयार चले और प्राण फूंक दे पाषाण में.
शुभकामनाएं स्वतंत्रता दिवस की..
सादर
अनु
तो अब ये ...
ReplyDeleteबोल ,सुन सकती नहीं
जाओ माँ ,
फिर से सींचो कोख अपनी
फिर से डालो बीज नन्हे |
या ....
हो सके तो ,
प्राण फिर से फूंक दो
पाषण में |
बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,
हृदयस्पर्शी..... सार्थक रचना
ReplyDeleteदेशभक्ति का भाव जगाती कविता।
ReplyDeleteमाँ भारती आज रो रही है अपने ही पुत्रों पे ... कोई उसकी गुहार नहीं सुनना चाहता ...
ReplyDeleteस्प्चने को प्रेरित और मजबूर करती है आपकी रचना ... लाजवाब ...
ReplyDeleteसही में, पाषाण हैं सब ..
काश इन्हें भारत माता की आह सुनाई देती !
marmsparshi bhavabhivyakti.bahut sahi sthiti dikhai hai aapne.तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,
ReplyDeleteभावमय करती प्रस्तुति
ReplyDeleteकल 15/08/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' पन्द्रह अगस्त ''
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की..शुभकामनाएं
क्या हम आज भी पूरी तरह से आज़ाद हैं ?????
ReplyDeleteआज के हालातों को देख भारत माँ के दुःख का मार्मिक चित्रण ..
ReplyDeleteऐसे हालातों में भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई स्वीकारे ...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
bharat maa aaj apni awastha ke liye ro rahi hai guhar sunane vala koi nahi hai...abhar
ReplyDeleteसार्थक चिंतन लिए रचना..
ReplyDeleteबदलेंगे देश के हालात इसी आशा के साथ
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये
बहुत सुन्दर.............देशभक्ति का भाव प्रेरित करती है |
ReplyDeleteबहुत भावमयी प्रस्तुति ममता जी
ReplyDeleteभावमयी प्रस्तुति ममता जी बधाई
ReplyDeleteये दिल्ली ......
ReplyDeleteअब नहीं इतिहास वाले वीरों की
ये हो चुकी पाषाण अब तो |
...कटु सत्य...बहुत सुंदर प्रस्तुति...
सार्थक लेख ...
ReplyDeleteDeshbhakti se bhari sundar post....maf kijiyega der se ayi yaha...
ReplyDeleteNice.
ReplyDeleteमानसिकता बदलने की ज़रुरत है.
देशभक्ति का भाव जगाती लाजबाब प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
सुदर भाव के साथ सुंदर गीत। बहुत अच्छी पोस्ट। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
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