जो इस दुनियाँ में नहीं हैं अब ,
उनका हम करते हैं तर्पण
लेकिन जो घर में जीवित हैं ,
एकाकी पन से पीड़ित हैं
उनका कोई सम्मान नहीं ,
रखता अब कोई ध्यान नहीं
अभिशप्त सा जीवन जीते हैं ,
वे सदा ही गुम सुम रहते हैं
उनके अपने ही कभी कभी,
घर से बेघर भी करते हैं
वृधाश्रम की दीवारों में ,
ऐसे ही जीवन पलते हैं
फिर दुनियाँ दारी की खातिर ,
करते हैं हम उनका तर्पण
आशीषों से झोली भर के ,
हल्का कर लेते अपना मन
बस ...इतना सा हम कर लेते ,
जीते जी उनको सुख देते|
सम्मान उन्हें करते अर्पण ,
सच्चा तब हो जाता तर्पण |
सत्य को उद्घाटित करती रचना .... बहुत मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteदिखावा आसान लगता है
ReplyDeleteआप के इन विचारों से मैं शतप्रतिशत सहमत हूँ...बहुत सच्ची और अच्छी बात लिखी है आपने...
ReplyDeleteनीरज
बस ...इतना सा हम कर लेते ,
ReplyDeleteजीते जी उनको सुख देते|
सम्मान उन्हें करते अर्पण ,
सच्चा तब हो जाता तर्पण |
जीते जी उनको सुख नहीं देते
इसीका प्रायश्चित करते है शायद वर्ष में एक दिन ...
सार्थक रचना है ...आभार !
दिल को छू लेने वाली रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु
आज के परिप्रेक्ष्य में एक सार्थक और उम्दा रचना |
ReplyDeleteसादर नमन |
सार्थक सुंदर मन को छूती रचना,,,,,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST: माँ,,,
सटीक .... सार्थक और विचारणीय पंक्तियाँ
ReplyDeleteसटीक .... सार्थक और विचारणीय पंक्तियाँ
ReplyDeleteहाँ, सिर्फ दुनियादारी की खातिर...
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
आज के यथार्थ का बहुत सार्थक और मर्मस्पर्शी चित्रण...आभार
ReplyDeleteबहुत खूब ...सत्य पर आधारित
ReplyDeleteभाव प्रवण रचना ..
ReplyDeleteभाव प्रवण रचना ..
ReplyDeleteसत्य कहती भावप्रद रचना...
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