tag:blogger.com,1999:blog-72967807503104918462024-02-20T08:50:20.900-08:00Man ki DuniaMamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-43703403287306987112014-08-24T07:34:00.001-07:002014-08-24T07:34:57.417-07:00विचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विचार ...?<br />
निराली सी इनकी दुनियाँ<br />
आते हैं |जाते है |<br />
निरंतर मन के आकाश पर<br />
घुमड़ते रहते है|<br />
आवारा बादलों की तरह ,<br />
ऊपर नीचे <br />
व्र्त्ताकर ,त्रिकोण ,चतुर्भुज<br />
असंख्य आकृतियाँ....................|<br />
फिर एकदम ..गुतम गुत्था होते से |<br />
कभी कभी एक सरल रेखा जैसे चलते फिरते ,हाथ हिलाते<br />
मुस्कुराते हुए चले जाते अपने अपने रास्ते |<br />
<br />
दूसरे ही पल ..वापस aa आ धमकते ,<br />
कुछ हडबडाते से ..|<br />
.तीव्र गति से भागते दौड़ते ,<br />
एक दूसरे से टकराते <br />
बन जाते अंतर द्वन्द<br />
क्षण मात्र मैं ला देते विध्वंस |<br />
<br />
कुछ पलों बाद .........स्वयं ही<br />
सहलाते स्वयमेव धावों को |<br />
खुद के लाये विनाश को देख कर <br />
आँसू बहाते .सहम जाते ,<br />
सकुचाते से बैठ जाते <br />
एक कोने में<br />
चुपचाप |<br />
चुपचाप?<br />
क्या सच में ?<br />
नहीं ......वे बैठे बैठे ही फूलते रहते ,<br />
गुब्बारे कि तरह |<br />
फिर बिना पंखों के ही उड़ने लगते<br />
मन के आकाश पर |<br />
झूमते लहराते नाचते कूदते<br />
धमा चोकडी मचाते खुशी से फूले न समाते<br />
और ...फूलते फूलते .....फट जाते ...फटाक ..|<br />
<br />
लाल पीले होते ,हात लहराते<br />
,उंगली दिखाते<br />
उलाहने आरोप प्रत्यारोप ...नजाने क्या क्या |<br />
अरे अरे ...भाई रुको ...रुको तनिक<br />
तुम भी कुछ आराम करो<br />
और मुझे भी सोने दो |<br />
खाम खः ..नीद खराब कर दी<br />
<br />
ममता<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-28636081112420257842014-03-05T10:07:00.000-08:002014-03-05T10:07:08.616-08:00किनारे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किनारे<br />
बांधे रहे नदी को<br />
पर ये कभी नहीं कहा .की .<br />
ठहर जाओ <br />
नदी भी बहती रही<br />
छू छू कर उन्हें.....<br />
अपनी बूंदों से<br />
बुझाती रही उनकी प्यास<br />
वैसे प्यासी तो<br />
वह भी थी<br />
पर किस से कहती ?<br />
नदी<br />
और प्यासी !!<br />
कोई विस्वास करेगा ?<br />
<br />
ममता<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-8542316036533993772013-07-26T10:21:00.000-07:002013-07-26T10:21:43.136-07:00रिश्तों की जमीं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रिश्तों की जमीन<br />
सींची जाती है जब<br />
प्रेम की कोमलभावनाओं से<br />
जोती जाती है<br />
अपनत्व के हल से<br />
डाला जाता है बीज<br />
विस्वास का<br />
तब निश्चित ही<br />
फूटता है अंकुर<br />
अपार संभावनाओं का<br />
पनपता है अटूट रिश्ता<br />
नन्हे नन्हे दो पत्ते<br />
बन जाते है प्रतीक<br />
अमर प्रेम के<br />
लहलहाती है संबंधों की फसल<br />
फिर वो रिश्ता कोई सा भी हो <br />
खूब निभता है<br />
पर आज की इस आपाधापी में<br />
कितना मुश्किल है<br />
निश्छल प्रेम<br />
अपत्व<br />
भरोसा<br />
हर चहरे पर एक मुखोटा<br />
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते<br />
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी<br />
भूल चूका है<br />
निबाहना !!!<br />
पर कभी जब<br />
हो जाता है सामना विपत्ति से<br />
तब यही लोग<br />
थामने लगते है रिश्तों की लाठी<br />
गिरगिट की तरह रंग बदलते है ये<br />
ढीट होते हैं<br />
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते<br />
औरों को<br />
दरकते रिश्तों के लिए<br />
और खुद हाथ झाड़ कर<br />
दूर खड़े हो जाते<br />
मासूम बन कर<br />
<br />
ममता<br />
<br /></div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-53160428314313204222013-04-20T10:30:00.001-07:002013-04-20T10:30:32.909-07:00जब उसने<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जब उसने खोली आँखें<br />
दिखाई दिए कई चेहरे<br />
अवसाद और ग्लानी में डूबे<br />
कानों में पड़े कुछ शब्द .......<br />
''अरे लड़की हुई है ''<br />
<br />
गुडिया खेलने की उम्र में<br />
दिखाई दिए कई के चहरे<br />
कुछ समझाते हुए<br />
कानों में पड़े ये शब्द ......<br />
'' पराई अमानत है ''<br />
<br />
यौवन ने दी दस्तक<br />
दिखाई दिए कई चहरे<br />
नजरें गडाये जिस्म पर<br />
कानों में पड़े कुछ शब्द ....<br />
'' क्या माल है ''<br />
<br />
ओढ ली जब लाल चूनर<br />
दिखाई दिया एक चेहरा<br />
मन नहीं ,तन को टटोलता<br />
कानों में पड़े कुछ शब्द ....<br />
'' बड़ी सुन्दर हो ''<br />
<br />
एक दिन अचानक मर गई<br />
दिखाई दिए कई चहरे<br />
विपत्ति से भयभीत<br />
कानो में पड़े कुछ शब्द ....<br />
''दगा दे गई ''<br />
<br />
प्राण विहीन नारी देह<br />
पड़ी थी जमीन पर<br />
आत्मा थी भटकती<br />
कानों में पड़े कुछ शब्द ......<br />
'' भली औरत थी ''<br />
<br />
ममता<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-3465656030928902712013-03-26T08:15:00.001-07:002013-03-26T08:15:06.382-07:00होली <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
aरंग लाल लाल लिए हाथ में गुलाल लिए<br />
भांग छान छान हुरियाय रहे नेता<br />
खाय रहे रोज घुंस नोट भरे ठूंस ठूंस<br />
दांत फाड़ फाड़ खिखियाय रहे नेता<br />
पोल खोल दे न कोई इस गोलमाल की<br />
खाते परदेस में खुलाय रहे नेता<br />
सच की पुरानी परंपरा को देखिये<br />
काट काट जड़ से मिटाय रहे नेता<br />
<br />
पोट पोट वोट देखो मांग रहे गाँव गाँव<br />
बोल बोल बात मिठ्याय रहे नेता<br />
द्वार द्वार जाय जाय शीश को झुकाय रहे<br />
हाथ जोड़ जोड़ मुसकाय रहे नेता<br />
जीत गीत गाय रहे ढोलकी बजाय रहे<br />
गाड़ियों में बैठ फर्राय रहे नेता<br />
साम दाम दंड भेद नीति अपनाय के ही<br />
वंश बेल अपनी बढ़ाय रहे नेता<br />
<br />
कौवा भांति कांव कांव संसद में शोर करें<br />
हाथ पाँव कुर्सी चलाय रहे नेता<br />
ज्ञान के विधान संविधान की भी आज तो<br />
चीर चीर धज्जियाँ उड़ाय रहे नेता<br />
सुरसा की भांति महंगाई मुंह फाड़े खड़ी<br />
चैन भरी बंसरी बजाय रहे नेता<br />
सत्ता के नशे में चूर चूर फिरें झूमते<br />
जनता को आज धमकाय रहे नेता<br />
<br />
लाज आज बेटियों की रोज रोज लुट रही<br />
कागजों पे बेटियां बचाय रहे नेता<br />
नारी की सुरक्षा वाले बिल नहीं पास किये<br />
अधिकार उनका दबाय रहे नेता <br />
ठौर दे न पाए उन्हें संसद में आजतक<br />
देवी देवी बोल बहलाय रहे नेता<br />
रात दिन अपनी भलाई की ही सोचते हैं<br />
खाय खाय मॉल मुटाय रहे नेता <br />
<br />
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-88168573067088528852013-03-24T01:39:00.001-07:002013-03-24T01:39:13.851-07:00प्रतीक्षारत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मैं ,<br />
जिस्म के अन्दर बसी<br />
एक आत्मा<br />
प्रतीक्षारत हूँ<br />
सदियों से<br />
उस एक पल के लिए ,जो<br />
हर ले मेरी<br />
विकलता<br />
भर ले अपनी अंजुरी में<br />
छटपटाती<br />
संवेदनाएं<br />
और पी ले ,<br />
एक घूंट भावनाओं का<br />
बदले में ,<br />
दे दे अपनत्व ,<br />
एक तिनका सहारे का,<br />
एक कनी मुस्कराहट की ,<br />
एक क्षण<br />
सास्वत प्रेम का<br />
<br />
कितने युग बीते<br />
मैंने<br />
कितनी बार जिस्म बदला<br />
काया हजारों बार मरी<br />
लेकिन मैं<br />
जीवित रही<br />
यूँ ही प्रतीक्षारत<br />
आज तक मुझ पर<br />
कोई द्रष्टि नहीं गई !!!!<br />
जाती भी कैसे ?<br />
वो सदा ही टिकी रही<br />
मेरे जिस्म पर !!!!!<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-49076099625158735182012-12-11T11:11:00.000-08:002012-12-11T11:11:02.073-08:00रामायण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
रामायण के<br />
राम<br />
यथार्थ या कल्पना ?<br />
अनुत्तरित प्रश्न ....<br />
अयोध्या के अवशेष ,<br />
रामसेतु ,<br />
असंख्य गाथाएँ ......<br />
अनेकों विवाद ....<br />
पर<br />
कल्पना हो या यथार्त<br />
महत्व तो भावना का है<br />
शायद ....राम रहे हों ...या<br />
न भी रहे हों ...<br />
रावण भी रहा हो या ...न भी हो<br />
पर सच तो ये है कि<br />
राम और रावण<br />
सिर्फ भावनाओं के नाम हैं<br />
एक "सद भावना ''<br />
दूसरी "दुर्भावना ''<br />
जो आज तक<br />
विद्यमान है हर दिल में<br />
कोई ग्रन्थ, उपदेश<br />
नहीं कर सके अंत इसका<br />
अब ये हमारी सोच पर निर्भर है<br />
किसे हम पालें पोशें<br />
और किसे<br />
कान पकड़ कर कर दें बाहर<br />
राम रावण युद्ध<br />
आज तक जारी है<br />
हमारे दिलों में .....<br />
कभी<br />
राम का पलड़ा भारी होता है तो ,<br />
कभी<br />
रावण का भी !!!<br />
आसान नहीं है युद्ध विराम<br />
बस इसी युद्ध में<br />
काम आती है "रामायण ''<br />
जो समझाती है मायने रामत्व के ..<br />
करती है सहायता ...<br />
कान पकड कर,रावण को<br />
बाहर का रास्ता दिखाने में<br />
तो फिर<br />
क्या फर्क पड़ता है इससे<br />
कि पात्र काल्पनिक हैं<br />
या सजीव !!<br />
<br />
<br />
<br />
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-22462281050442269062012-12-03T06:33:00.000-08:002012-12-03T06:34:19.358-08:00रिश्तों की जमींन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
रिश्तों की जमीन<br />
सींची जाती है जब<br />
प्रेम की कोमल भावनाओं से<br />
जोती जाती है<br />
अपनत्व के हल से<br />
डाला जाता है बीज<br />
विस्वास का<br />
तब निश्चित ही<br />
फूटता है अंकुर<br />
अपार संभावनाओं का<br />
पनपता है अटूट रिश्ता<br />
नन्हे नन्हे दो पत्ते<br />
बन जाते हैं प्रतीक<br />
अमर प्रेम के ....<br />
लहलहाती है संबंधों की फसल<br />
फिर वो रिश्ता कोई सा भी हो <br />
खूब निभता है<br />
पर आज की इस आपाधापी में<br />
कितना मुश्किल है<br />
निश्छल प्रेम<br />
अपत्व<br />
भरोसा<br />
हर चहरे पर एक मुखोटा<br />
फायदा नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते<br />
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी<br />
भूल चूका है<br />
निबाहना !!!<br />
पर कभी जब<br />
हो जाता है सामना विपत्ति से<br />
तब यही लोग<br />
थामने लगते है रिश्तों की लाठी<br />
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं ये<br />
ढीट होते हैं<br />
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते<br />
औरों को<br />
दरकते रिश्तों के लिए<br />
और खुद हाथ झाड़ कर<br />
दूर खड़े हो जाते<br />
मासूम बन कर<br />
<br />
ममता<br />
<br /></div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-1097554975466358912012-10-27T11:00:00.005-07:002012-10-27T11:00:50.929-07:00शब्द <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
शब्द जो करते हैं<br />
आहत<br />
रहते हैं महफूज ता उम्र<br />
स्मृतियों के पिटारे में .........<br />
ठुक जाते हैं<br />
कील की तरह<br />
मन की कोमल दीवार पर<br />
और उन्हीं कीलों पर<br />
टंग जाती हैं<br />
तार तार हुई भावनाएं<br />
बेबस से हम<br />
करते रहते हैं प्रयास<br />
इन तारों को जोड़ने का<br />
छिपा कर दर्द<br />
अलापने लगते हैं<br />
फिर से नया राग<br />
पर ...<br />
मन के एक कोने में<br />
सिसकती रहती हैं<br />
भावनाएं<br />
सुप्त हो जाता है निनाद<br />
रह जाते हैं केवल शब्द<br />
जो कर गए थे<br />
आहत<br />
<br />
ममता<br />
<br />
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-31541485863407601122012-10-19T10:31:00.000-07:002012-10-19T10:31:51.492-07:00कितने शातिर हैं हम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="clearfix mbs pbs _1_m " style="border-bottom-color: rgb(229, 229, 229); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; margin-bottom: 5px; padding-bottom: 5px; zoom: 1;">
<div class="_3dp _29k" style="display: table-cell; vertical-align: top; width: 10000px;">
<div class="_1_n fsm fwn fcg" style="color: grey; line-height: 15px;">
<a class="uiLinkSubtle" href="http://www.facebook.com/mamta.bajpai.167/posts/288657741238333" style="color: grey; cursor: pointer; text-decoration: none;">October 5</a><div class="uiSelector inlineBlock mls audienceSelector timelineAudienceSelector audienceSelectorNoTruncate dynamicIconSelector uiSelectorNormal uiSelectorDynamicTooltip" style="display: inline-block; margin-left: 5px; margin-top: -2px; max-width: 200px; vertical-align: top; zoom: 1;">
<div class="wrap" style="position: relative;">
<a ajaxify="/ajax/privacy/privacy_menu.php?iconsize=small&oid=288657741238333" aria-expanded="false" aria-haspopup="1" class="uiSelectorButton uiButton uiButtonSuppressed uiButtonNoText" data-hover="tooltip" data-label="" data-length="30" data-oid="288657741238333" data-tooltip-alignh="center" data-tooltip="Public" href="http://www.facebook.com/mamta.bajpai.167?ref=tn_tnmn#" rel="toggle" role="button" style="-webkit-box-shadow: none; background-image: none; background-position: 100% -442px; background-repeat: no-repeat no-repeat; background-size: auto; border: 1px solid transparent; color: #3b5998; cursor: pointer; display: inline-block; font-weight: bold; line-height: 13px; max-width: 169px; padding: 2px 20px 2px 8px; text-align: center; text-decoration: none; vertical-align: top; white-space: nowrap;" title="Public"><i class="mrs defaultIcon customimg img sp_6x2a31 sx_7218bf" style="background-image: url(http://static.ak.fbcdn.net/rsrc.php/v2/yK/x/ELuVu667uh_.png); background-position: -13px -409px; background-repeat: no-repeat no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 12px; margin-left: -2px; margin-right: 1px; margin-top: 2px; vertical-align: top; width: 12px;"></i></a></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="_1x1" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; padding: 10px 0px 15px;">
<div class="userContentWrapper">
<div class="_wk" style="font-size: 13px; line-height: 18px;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_50818dde59a562e13276310" style="display: inline;">
बना कर एक<br />प्रस्तर की प्रतिमा<br />पूजते हैं हम उसे ,<br />हो कर श्रद्धावनत<br />माँगते हैं वरदान<br />और वो,<br />भर देती है झोलियाँ आशीषों से<br />वो ,होती है<br />हमारी आराध्य कुलदेवी रक्षक ...........<br />झुकाते हैं शीश<br /><div class="text_exposed_show" style="display: inline;">
हो जाते हैं तृप्त दर्शन मात्र से<br />लेकिन ,<br />जब वो धर कन्या का रूप<br />स्थापित होती है<br />गर्भ में<br />तब ,बड़ी निष्ठुरता से<br />खरोंच फेंकते हैं उसे<br />बाहर .........<br />कहीं कोई स्थान नहीं उसका<br />न मन में न घर में<br />और हम फिर से<br />मशगूल हो जाते हैं<br />श्रद्धा के अभिनय में<br />कितने शातिर हैं हम !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!<br /></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-66242489021536814102012-10-10T10:51:00.000-07:002012-10-10T10:51:29.971-07:00तर्पण <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
जो इस दुनियाँ में नहीं हैं अब ,<br />
उनका हम करते हैं तर्पण<br />
लेकिन जो घर में जीवित हैं ,<br />
एकाकी पन से पीड़ित हैं<br />
उनका कोई सम्मान नहीं ,<br />
रखता अब कोई ध्यान नहीं<br />
अभिशप्त सा जीवन जीते हैं ,<br />
वे सदा ही गुम सुम रहते हैं<br />
उनके अपने ही कभी कभी,<br />
घर से बेघर भी करते हैं<br />
वृधाश्रम की दीवारों में ,<br />
ऐसे ही जीवन पलते हैं<br />
फिर दुनियाँ दारी की खातिर ,<br />
करते हैं हम उनका तर्पण<br />
आशीषों से झोली भर के ,<br />
हल्का कर लेते अपना मन<br />
बस ...इतना सा हम कर लेते ,<br />
जीते जी उनको सुख देते|<br />
सम्मान उन्हें करते अर्पण ,<br />
सच्चा तब हो जाता तर्पण |<br />
</div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-1506844680441641512012-09-23T07:26:00.000-07:002012-09-23T07:26:47.819-07:00काया <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
काया ....<br />
न जाने कितने<br />
उद्दाम आवेगों को झेलती ..<br />
<br />
<br />
ढ़ोती...<br />
आभिमान के बोझ को<br />
नाचती ..<br />
अहम् के इशारों पर ..<br />
जरिया बनती .....<br />
प्रदर्शन का<br />
साधन बनती ...<br />
उपभोग का<br />
<br />
<br />
अंततः .....<br />
<br />
हो जाती जर्जर<br />
लेकि न मन लालाइत रहता<br />
इसे पुनर्जीवित करने में<br />
<br />
बसीभूत हो काया के<br />
कभी न करता दर्शन<br />
आत्मा का<br />
वो सदा ही रहती<br />
उपेक्षित !!!!!<br />
<br />
पता ही न चला<br />
कब इसकी साँसें टूटीं<br />
कब हो गया अंत ?<br />
और मन आज भी ....<br />
आत्मा को मार कर<br />
<br />
सजा धजा कर काया को<br />
जीता है शान से<br />
<br />
<br />
<br />
ममता </div>
Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-30614455737288853542012-08-12T08:50:00.000-07:002012-08-12T08:50:54.803-07:00पन्द्रह अगस्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
aपन्द्रह अगस्त की रात को ,<br />
वो हाथ में झंडा लिए<br />
थी राजपथ पर घूमती |<br />
<br />
आँखों में थी बस याचना ,<br />
और घाव छाती पर लिए ,<br />
हर द्वार पर वो ढूकती |<br />
<br />
शायद कोई मिल जाए......<br />
जो घाव पर मरहम धरे ,<br />
अपने हिया में सोचती |<br />
<br />
हर द्वार उससे पूछता ,<br />
तुम कौन हो ?<br />
क्यों आई हो?<br />
इस राजपथ के द्वार पर |<br />
<br />
अवरुद्ध उसके कंठ से ,<br />
पीड़ा निकल कर झर पड़ी<br />
फिर डगमगाए थे कदम ,<br />
और वो जमीं पर गिर पड़ी |<br />
<br />
तब बोली वो कराह के<br />
तुम लाल कैसे हो मेरे ,<br />
मुझ को नहीं पहचानते |<br />
<br />
अन्याय से घायल हुई ,<br />
माँ भारती हूँ आपकी<br />
क्यों हाथ भी ना थामते |<br />
<br />
फिर हाथ अपना टेक कर<br />
पीड़ा समेटे घाव की ,<br />
उठने लगी वो भारती |<br />
<br />
इतिहास में अंकित<br />
सुतों को याद कर ,<br />
रोने लगी वो भारती |<br />
<br />
फिर हाथ फैला कर ,<br />
दुआ करने लगी<br />
आकाश से |<br />
<br />
तू शाक्षी है समय का ,<br />
तू शाक्षी इतिहास का,<br />
तू शाक्षी बलिदान की हर बूंद का |<br />
<br />
उठ ,जाग फिर से<br />
थाम ले शमशीर कर में ,<br />
औ काट दे अन्याय का सर<br />
<br />
तू काट दे टुकड़ों में<br />
भ्रष्टाचार को, अपराध को ,<br />
औ स्वार्थ को<br />
<br />
वो देर तक रोती रही<br />
आँसू से मुख धोती रही ,<br />
पर आँख दिल्ली की भीगी नहीं |<br />
<br />
और खून दिल्ली का खौला नहीं<br />
आवाज दिल्ली तक पहुंची नहीं<br />
माँ भारती के रुदन की |<br />
<br />
तब एक बच्चे ने<br />
पकड़ कर हाथ ,<br />
समझाया उसे |<br />
<br />
क्यों ब्यर्थ में रोती हो माँ ?<br />
भटक कर रास्ता<br />
आ गयी हो कहाँ ?<br />
<br />
ये दिल्ली ......<br />
अब नहीं इतिहास वाले वीरों की<br />
ये हो चुकी पाषाण अब तो |<br />
<br />
तो अब ये ...<br />
बोल ,सुन सकती नहीं<br />
जाओ माँ ,<br />
फिर से सींचो कोख अपनी<br />
फिर से डालो बीज नन्हे |<br />
या ....<br />
हो सके तो ,<br />
प्राण फिर से फूंक दो<br />
पाषण में |<br />
<br />
ममता बाजपेई<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-35308570424382969622012-08-12T08:25:00.001-07:002012-08-12T08:25:22.968-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-30657607737708680612012-06-17T10:20:00.001-07:002012-06-17T10:20:13.474-07:00शब्दों की नाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
शब्दों की नाव बना कर ....<br />
कूद पड़ी हूँ<br />
अभिव्यक्ति के सागर में<br />
भर लिया है<br />
भुजाओं में बल विचारों का......<br />
पतवार है सम्वेदनाओं की .....<br />
भावनाओं की लहरों के संग बहते बहते<br />
अभी तो मिलना है<br />
चिंतन मनन और<br />
ज्ञान की अनेकों तरंगों से .......<br />
जिनके आश्रय से<br />
एक एक पग बढ़ेगी मेरी नाव<br />
और मैं पहुच जाऊँगी उस पार !!!<br />
मेरे सपनों के गाँव में .....<br />
जहाँ जोहते हैं बाट<br />
सृजन के पाँखी......<br />
अपने परों पर सहेजे हवाओं की सोंधी गंध<br />
और जोहते हैं बाट<br />
छंदों के वृक्ष<br />
अपने पत्तों पर<br />
मुक्तक की बूँदें समेंटे ओस की तरह<br />
इन बूंदों से गुजर कर आएगी जब<br />
प्राची की रश्मि.....<br />
रस और अलंकार के रंगों में नहाई तब ........<br />
होगी सतरंगी भोर<br />
मेरे सपनों के गाँव में<br />
ममता<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-24092854195739276272012-06-06T07:24:00.000-07:002012-06-06T07:24:23.228-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
उठा तूलिका चित्रकार ने<br />
वर्तमान का चित्र लिखा<br />
समझ सको तो समझो मित्रों<br />
दर्द कौन सा वहाँ दिखा<br />
<br />
एक चित्र में उच्च शिखर पर<br />
झूठ पसर कर बैठा था<br />
सत्य ठगा सा एक कोने में<br />
एकाकी सा बैठा था<br />
लालच की अंधी गलियों में<br />
गुम होता ईमान दिखा<br />
<br />
एक चित्र में एक भिखारिन<br />
बार बार तन ढांक रही<br />
लेकिन उम्र बगावत करके<br />
चिथड़ों मे से झाँक रही<br />
तार तार होता नजरों से<br />
लज्जा का अभिमान दिखा<br />
<br />
एक चित्र में पावन सरिता<br />
मलिन पड़ी थी निर्बल सी<br />
कभी लबालब थी जो जल से<br />
दिखी आज वो मरुथल सी<br />
कूल कछार पर्ण वृक्षों का<br />
मौन रुदन सा गान दिखा<br />
<br />
एक चित्र में लोग बो रहे<br />
बीज यहाँ मीनारों के<br />
अंकुर फूट रहे धरती में<br />
खिडकी और दीवारों के<br />
आवासों की बलिबेदी पर<br />
खेतों का बलिदान दिखा<br />
<br />
एक चित्र में आग पेट की<br />
धू धू करके धधक रही<br />
निर्धनता उसके चरणों में<br />
भूकी प्यासी सिसक रही<br />
प्रस्तर की प्रतिमा के सम्मुख<br />
स्वर्ण रजत का दान दिखा<br />
<br />
ममता</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-13315532963194805522012-04-10T06:04:00.000-07:002012-04-10T06:04:51.765-07:00गीली ओस की तरह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कुछ भावनाएँ<br />
जोड़ कर ,<br />
भर लिया मन का आँगन ,<br />
प्यारे प्यारे शब्दों से |<br />
जिनके मायने मैंने गढे थे ,<br />
अपनी खुशी के लिए |<br />
उन्हें पढ़ पढ़ कर<br />
खूब झूमीं नाची |<br />
जी भर कर मनाया उत्सब |<br />
<br />
कुछ शब्दों को<br />
'' वो ''<br />
रख गया था मेरे<br />
मन के द्वार पर ,<br />
मखमली लिबाश मे<br />
लपेट कर |<br />
और मैंने जी लिए ,<br />
जीवन के कुछ पल ,<br />
उनके सहारे |<br />
पर तोड़ कर जब ,<br />
मखमली आवरण<br />
कुछ शब्द निकले ,<br />
तीखे नश्तर से<br />
जा लगे<br />
सीधे दिल पर<br />
और बह निकली धारा ,<br />
आँखों के<br />
कटोरों से<br />
नहला दिया<br />
गालों को<br />
सिमट गईं <br />
भावनाएँ<br />
उँगलियों के पोरों पर<br />
गीली ओस की तरह |<br />
<br />
ममता<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-22910530426473454122012-03-16T02:06:00.001-07:002012-03-16T02:13:33.629-07:00पचासवा बसंत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">पन्द्रह मार्च १९६३<br />
हाँ ..यही तो है ...<br />
मेरा जन्म दिवस ....<br />
पूरे उनंचास बसंत हो गए विदा ..<br />
और् पचासवे ने दी है दस्तक !<br />
बेटी को बिदा करके ......<br />
बच्चों से अलग रह के ......<br />
समय गुजारने के बहाने तलाशते ...<br />
एकांत घर में एकाकीपन को झेलते .<br />
रह रह के याद आता है बचपन |<br />
इस पचासवे बसंत में ,<br />
वे लम्हे जिनमें थी ...<br />
माँ की डाट ,लाड प्यार ,रूठना ,मनाना ....<br />
और पिता का वरदहस्त ....<br />
<br />
चिंता ?<br />
चिंता के लिए कोई स्थान ही नहीं |<br />
अपनों के मजबूत हाथ ,<br />
हर परेशानी को बीच में ही रोक लेते थे |<br />
'' मैं हूँ न ''<br />
भाई का स्नेह में पगा आश्वासन <br />
याद आता है इस पचासवे बसंत में |<br />
गोबर से लीपा आँगन ,<br />
सामने बड़ा सा चबूतरा ....<br />
और उसके बगल में खड़ा <br />
वो बूढा नीम का पेड ......<br />
हर घटना का साक्षी |<br />
और जब फूलता तो ...<br />
फूलों का ढेर लग जाता चबूतरे पर <br />
फिर निम्बोली का टपकना .....<br />
सामने वाली मोटी डाल के खोखले में <br />
झांकते तोते के बच्चे ....<br />
और उनकी पीली चोंच ..<br />
सब याद आता है इस पचासवे बसंत में | <br />
सामने खेतों की ओर जाता रास्ता ..<br />
काँधे पर हल रखे आते जाते लोग ...<br />
''जय राम जी की ''मनमोहक अभिवादन ..<br />
बैल गाडी से अनाज का लाना ..<br />
संयुक्त परिवार का सुख ...<br />
पूरे गाँव को <br />
एक परिवार मानने का जज्वा <br />
सचमुच बहुत याद आता है पचासवे बसंत में <br />
बैलों के गले में बंधी घंटियों का स्वर ...<br />
गाय का रम्भाना ...<br />
बछड़े का उछलना कूदना ...<br />
थनों में उतरता दूध ...<br />
और गाय का तन्मय हो के <br />
बछड़े को चाटना ....<br />
हलाकि बहुत दिन हुए गाँव छोड़े <br />
पर लगता है <br />
अभी कल् की ही तो बात है ..<br />
सब कुछ याद आता है इस पचासवे बसंत में <br />
वे हाथ जो दिया करते थे आशीर्वाद <br />
अब नहीं हैं <br />
तभी तो अब <br />
,उनके होने का अर्थ समझ में आता है <br />
अब जब ,<br />
अपने कमरे में बैठती हूँ .तो <br />
याद आती है वे सूनी आँखें |<br />
जब माँ बिदा करती थी मुझे ....<br />
ओझल होने तक ताकती रहती थी ....<br />
अपलक मौन ......<br />
आज बेटी को बिदा करने पर<br />
समझ में आया उन आँखों का दर्द ...<br />
इस पचासवे बसंत में <br />
<br />
ममता <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com34tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-43222752294381741322012-03-08T04:52:00.002-08:002012-03-08T04:52:55.328-08:00फाग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रंग बिरंगे रंग उड़ रहे<br />
फाग चल रही संसद में |<br />
होली की इन बौछारों से<br />
सराबोर सब संसद में ......रंग बिरंगे रंग ......<br />
<br />
कुछ हुरियारे कुछ हुरियारिन<br />
मिलजुल खेल रहे होली |<br />
अलग अलग परिधान है उनके<br />
अलग अलग उनकी बोली |<br />
अपने अपने हुनर दिखावें<br />
एक दूजे को संसद में| ..रंग बिररंगे रंग ......<br />
<br />
कुछ हुरियारे भूके प्यासे <br />
कुर्सी से चिपके जावें |<br />
सारा ध्यान लगा खानें में<br />
पेट नहीं पर भर पावें |<br />
भारत का ईमान खा गए<br />
बैठे बैठे संसद में |..रंग बिरंगे रंग ....<br />
<br />
इक हुरियारिन गोरीनारी<br />
गुमसुम सी देखें बैठी |<br />
पहनावा देसी साडी है<br />
लेकिन तन है परदेसी |<br />
डोर थाम के नाच नचावे<br />
कठपुतली सा संसद में |रंग बिरंगे रंग ....<br />
<br />
इक हुरियारे पगड़ी वाले<br />
मंद मंद से मुस्कावें |<br />
चाहे जितना रंग लगाओ<br />
कुछ भी बोल नहीं पावें |<br />
छोटो छोटी बात पूछ रहे<br />
मैडम जी से व संसद में |रंग बिरंगे रंग ...<br />
<br />
इक हुरियारे प्रेम पुजारी<br />
दिखे प्रेम रंग में डूबे |<br />
तन से तो संसद में बैठे<br />
मन में चलते मनसूबे |<br />
लाज शर्म की तोड़ के सीमा<br />
फ़िल्म देखते संसद में |रंग बिरंगे रंग ....<br />
<br />
इक हुरियारिन श्याम सलोनी<br />
हाथी पर बैठी आवें |<br />
चोराहे को देख यकायक<br />
प्रतिमा बन कर सज जावें |<br />
एक अकेली सब पर भारी<br />
अपने घर की सासद में | रंग बिरंगे रंग ...<br />
<br />
कुछ हुरियारे जादू वाले<br />
करतब कर के दिखलावें<br />
कभी एक पाले में दीखें<br />
झट दूजे में सज जावें<br />
अदला बदली दल की कर रहे<br />
खेल खेल में संसद में<br />
रंग बिरंगे रंग उड़ रहे<br />
फाग चल रही संसद में<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-70162884199347826922012-02-26T07:11:00.001-08:002012-02-26T07:17:17.647-08:00संध्या<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhi-IRL5xqqt4yTYZ9TVoAIQ_6_68vb5odBXTgExWyWfUYExOKbvJMuL7cpYE60QBmYCmHrbPqxgd7EYR_MJmIy1ECD9_s86xXKopDUQrhdp9G6jy7aVeE9VzdBx8RP6IDPKcbtyBf6WEVk/s1600/Evening+scene,+river+at+Kampot,+Cambodia+-+AAS+Archives.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhi-IRL5xqqt4yTYZ9TVoAIQ_6_68vb5odBXTgExWyWfUYExOKbvJMuL7cpYE60QBmYCmHrbPqxgd7EYR_MJmIy1ECD9_s86xXKopDUQrhdp9G6jy7aVeE9VzdBx8RP6IDPKcbtyBf6WEVk/s320/Evening+scene,+river+at+Kampot,+Cambodia+-+AAS+Archives.jpg" width="320" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWiFhQWlI572K3FFg-iBV-0IVNCzSPieUvRrZnn8bcq-H7zObnbcJKt_llxIr0843aAgX5lBZ1EU15PjHQ5YBdJMD-lrJw1aMDdAquU-Lv-xqVuhhOHh7bCMLTA1E2yiEQ7hNgfn1PgKiG/s1600/132.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br />
</a></div><div style="text-align: center;">लिए गर्भ में भोर का अंकुर </div><div style="text-align: center;">रजनी से मिलने को आतुर </div><div style="text-align: center;">श्रम की लाली से आलोकित </div><div style="text-align: center;">सूर्य रश्मि पर आती संध्या</div><div style="text-align: center;">पल पल ढलती जाती संध्या </div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;">दीप जलें जब शिव आलय में </div><div style="text-align: center;">उठे नाद डमरू के स्वर में </div><div style="text-align: center;">वेद मन्त्र नभ में जब गूँजे </div><div style="text-align: center;">भक्ति भाव फैले कणकण में </div><div style="text-align: center;">तब प्रभु के पावन चरणों में </div><div style="text-align: center;">शीश झुकाए आती संध्या </div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;">स्वेद बिंदु को पौछ श्रमिक जब</div><div style="text-align: center;"> अपने अपने घर को आते </div><div style="text-align: center;">कल् रब गान सुनाते पंछी </div><div style="text-align: center;">तरु की फुनगी पर आ जाते </div><div style="text-align: center;">तब पैरों में पहन के पायल </div><div style="text-align: center;">घुंगरू को छनकाती संध्या </div><div style="text-align: center;"> </div><div style="text-align: center;">जैसे कोई स्वप्न सुंदरी </div><div style="text-align: center;">उठा के घूँघट झाँक रही हो </div><div style="text-align: center;">अलसाई बोझिल अंखियों से </div><div style="text-align: center;">प्रीतम का मुख ताक रही हो </div><div style="text-align: center;">सराबोर हो प्रेम रंग में </div><div style="text-align: center;"> दुलहन सी शर्माती संध्या </div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;">जीवन पथ के अंतिम क्षण में </div><div style="text-align: center;">एकाकी जब मन हो जाता </div><div style="text-align: center;">थकित जीर्ण काय को ढोता </div><div style="text-align: center;">स्मृतियों के दीप जलाता </div><div style="text-align: center;"> चला चली की इस बेला में </div><div style="text-align: center;">निष्ठुर सी हो जाती संध्या </div><div style="text-align: center;"><br />
ममता </div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div style="text-align: center;"><br />
</div></div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-74005096838979936852012-02-23T22:16:00.001-08:002012-02-23T22:17:50.695-08:00जब भोर हुई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIctmfLwljhHWEdDWKfE7uBhDs9ROnlTI-EGTEtShpW58MgbrQmsMdVM4vulBOXYYuYDTe0vMJXjz2Pger4ABwLzyDwH4AvSbds_doQ6fU4jKJxY2qbRwbhV4YuErqG_gGrdxrqvSLDEVM/s1600/Sunrise_Tree-600x421.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIctmfLwljhHWEdDWKfE7uBhDs9ROnlTI-EGTEtShpW58MgbrQmsMdVM4vulBOXYYuYDTe0vMJXjz2Pger4ABwLzyDwH4AvSbds_doQ6fU4jKJxY2qbRwbhV4YuErqG_gGrdxrqvSLDEVM/s320/Sunrise_Tree-600x421.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: center;"><br />
<br />
<br />
<br />
जब भोर हुई<br />
सूरज निकला ,<br />
नभ मे फैली <br />
वो अरुणाई |<br />
टेसू महके , <br />
,चिडियाँ चहकें ,<br />
धरती पर छाई तरुनाई |<br />
<br />
सर पर गागर ले,<br />
जल भरने |<br />
चल पड़ी गुजरिया , <br />
बल खाती |<br />
ये शीतल मंद <br />
पवन बहती ,<br />
और डाल डाल <br />
को छू जाती <br />
<br />
लो चाक चला ,<br />
कच्ची मिटटी <br />
लिपटी कुम्हार के <br />
हाथों मे |<br />
आकार मिला, <br />
बन गयी दिया ,<br />
जलने को <br />
काली रातों मे |<br />
<br />
काँधे पर हल <br />
लेकर किसान ,<br />
बैलों के बंधन<br />
खोल रहा |<br />
बज रहीं घंटियाँ <br />
छनन छनन ,<br />
स्वर गलियारे मे <br />
डोल रहा |<br />
<br />
सरसों की कलियाँ <br />
झूम रहीं , <br />
पीले रंग की<br />
चादर ओढ़े | <br />
भवरों की गुनगुन <br />
स्वर लहरी ,<br />
कानों मे मीठा रस घोले |<br />
<br />
सूरज की परछाई जल मे ,<br />
रंग झिलमिल झिल मिल <br />
घोल रही |<br />
सतरंगी किरने कानों मे ,<br />
कुछ गुपचुप गुपचुप <br />
बोल रहीं|<br />
<br />
तुम भाप बनो<br />
और उड़ जाओ ,<br />
पहुचो नभ की <br />
ऊंचाई पर |<br />
<br />
फिर बादल की<br />
बौछार लिए ,<br />
छम से बरसो <br />
इस धरती पर |<br />
<br />
नदियों मे पानी <br />
तुम भर दो |<br />
इस धारा को <br />
धानी तुम कर दो |<br />
धीरे धीरे लाओ बसंत, <br />
ये सुबह सुहानी <br />
तुम कर दो |<br />
<br />
ममता </div><br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-53551382158676944532012-01-25T07:43:00.000-08:002012-01-25T07:43:22.557-08:00प्रजा तंत्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ <br />
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ? <br />
<br />
सच्चाई पर हैं सौ पहरे <br />
बेईमानी का कोई जिक्र नहीं |<br />
पल रहा ह्रदय में भ्रष्ट तंत्र ,<br />
अपनों की कोई फिक्र नहीं |<br />
<br />
बस फिक्र सदा है निज हित की ,<br />
इतिहास घिनोना रचा यहाँ |<br />
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,<br />
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?<br />
<br />
जिस सिहासन पर बैठे हो <br />
ये शायद तुमको याद नहीं |<br />
ये ताज हमीं ने पहनाया <br />
वर्ना कोई औकात नहीं |<br />
<br />
पर रुको तनिक ठहरो देखो ,<br />
सब पोल तुम्हारी खुली यहाँ |<br />
मैं पूछ रही दिल्ली तुझ से ,<br />
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?<br />
<br />
पहले शब्दों के हेर फेर ,<br />
फिर सम्मोहन के वादे हैं |<br />
पर तुमको सारा जग जाने ,<br />
कैसे नापाक इरादे हैं |<br />
<br />
हर बात तुम्हारी घातों की,<br />
छल छिद्र कपट सब पला यहाँ | <br />
मैं पूछ रही दिल्ली तुझसे ,<br />
ये प्रजा तंत्र अब चला कहाँ ?<br />
<br />
ममता बाजपेई <br />
<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-37996706945633099172012-01-21T09:33:00.000-08:002012-01-21T09:33:06.391-08:00जीवन है तो चिंताएं हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जीवन है तो चिंताएं हैं ,<br />
ये सिक्के के दोनों पहलू |<br />
तुम कहो तुम्हारी चिंताएं <br />
अपनी चिंताएं मैं कह लूँ |<br />
<br />
एक दूजे को संबल दे दें ,<br />
हौसला बढ़ाएं हम अपना |<br />
सह सको व्यथा तुम जीवन की <br />
अपनी पीडाये मैं सह लूँ |<br />
<br />
मन हल्का कर लें कह सुन कर <br />
कुछ भार हिया का कम तो हो|<br />
उँगली थामे उम्मीदों की ,<br />
पगडण्डी एक नयी गह लूँ |<br />
<br />
कुछ कड़वी तीखी बोछारें <br />
कुछ खारे पानी की बूंदे |<br />
मिल एक लहर सी बन जाऊं <br />
फिर लहरों के संग संग बह लूँ <br />
<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-1576792208300661882012-01-11T06:56:00.000-08:002012-01-11T06:57:17.916-08:00वे सब के सब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">उन बुजुर्गों का दर्द जो अपने बच्चों के छोड़ <br />
कर जाने के बाद एकाकी जीवन जी रहे हैं <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
वे सब के सब , जो दिल के करीब थे ,<br />
एक एक कर छोड़ के जाते रहे |<br />
<br />
और हम दिल में छुपाये दर्द सारे ,<br />
बेबजह से यूँ ही मुस्काते रहे <br />
<br />
वक्त ने लिख दी जुदाई की घडी ,|<br />
ख्वाब मन में कुलबुलाते ही रहे |<br />
<br />
शब्द ठिठके से जुबां लाचार सी ,<br />
सारे खारे घूंट पी जाते रहे |<br />
<br />
शर्त या कोई परीक्षा प्यार में होती नहीं ,<br />
और वो बस प्यार मेरा आजमाते रहे |<br />
<br />
जब अकेले बैठ कर सोचा किये ,<br />
याद वे बिछड़े सभी आते रहे |<br />
<br />
यूँ किसी की याद में जीना नहीं आसान है ,<br />
हम जिए हैं और अपने जख्म सहलाते रहे |<br />
<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com25tag:blogger.com,1999:blog-7296780750310491846.post-49563741482576773142012-01-07T07:57:00.000-08:002012-01-07T07:57:27.280-08:00चुनाव चिन्ह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> बीते वर्ष २०११ में जब बड़े बड़े घोटाले उजागर हुए तो समाचारों मे मैंने उमर अब्द्ल्लाह का बयान सुना ,वे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ बोलते हुए कह रहे थे कि जेल से निकलने के बाद सारे भ्रष्ट नेता यदि अपनी अलग पार्टी बना लें तो सोचिये ये अपनी पार्टी का क्या '' चुनाव चिन्ह '' रखेंगे बस मैंने इसी विषय ,पर एक व्यंग लिखा है |<br />
<br />
<br />
<br />
तिहाड से निकले हुए<br />
नेताओं ने मिल कर ,<br />
बनाई एक पार्टी |<br />
<br />
क्या हो ''चुनाव चिन्ह '''<br />
इस विषय पर चर्चा के लिए ,<br />
बुलाई गोष्ठी |<br />
<br />
<br />
ऐसे चिन्ह की<br />
थी जरुरत ,<br />
जिस पर सब हों एकमत |<br />
<br />
सुझाव थे बहुत सारे ,<br />
परेसान थे <br />
बेचारे |<br />
<br />
तभी....एक भाई बोले ,<br />
कैसा हो ? यदि चिन्ह हो ,<br />
'' नोटों का बण्डल ''<br />
<br />
बहन जी बोलीं न ..न ..न <br />
इससे तो अच्छा है ...<br />
'' विमान से लटकी सैंडिल ''<br />
<br />
या .......फिर <br />
.''..नोटों की माला ''<br />
नहीं...तो...फिर ..<br />
''किशान के मुह पर ताला ''<br />
<br />
<br />
तभी धीरे से फुसफुसाई ,<br />
एक और बहनझी ,<br />
इतना भी बुरा नहीं है <br />
''' २ इस्पेक्त्र्म जी ''<br />
<br />
एक भाई ने ,<br />
सहलाई अपनी दाढ़ी,<br />
दिखाई अपनी हेल्थ |<br />
<br />
उनका सुझाव था ,<br />
कैसा रहेगा ?<br />
''कॉमन वेल्थ '' |<br />
<br />
तभी...एक पुराने नेता ,<br />
उठ कर आये ,<br />
और बिहारी मे बतियाए |<br />
<br />
कहने ...लगे ,चुनाव.. .. चिन्ह..का <br />
कौनों फिकर नहीं है | <br />
हमरे प्...आ ..स <br />
सुझाव कई हैं |<br />
<br />
वो क्या कहते हैं ?<br />
''चारा का गठरी ''<br />
'' रेल का पटरी ''<br />
''बच्चों का फौज ''<br />
नहीं तो फिर ,<br />
''तबेला में मौज ''<br />
<br />
तभी ..एक , <br />
..दक्षिण भारतीय नेता चिल्लाये !!!!!!<br />
उन्होंने बिलकुल<br />
नए नाम सुझाए जैसे ... कि .<br />
<br />
''धसकती हुई खादान ''<br />
''महलनुमा मकान ''<br />
''सोने का सिहासन ''<br />
या फिर ,<br />
''सोने के बासन '' (बर्तन )<br />
<br />
कोने में बैठे एक,<br />
कानून के जानकार नेता फुफकारे !!!!!!!<br />
और उन्होंने रिजेक्ट कर दिए,<br />
सुझाव सारे !!!!!!!!!!!!!!!!!<br />
<br />
कहने लगे ,<br />
अरे !!! अभी हम इतने भी नहीं हैं लाचार ,<br />
सीधे सीधे रखो ना ''भ्रष्टाचार '' |<br />
<br />
और यू . पी . <br />
ऍम .पी . <br />
दिल्ली <br />
बिहार <br />
मद्रास <br />
किसी का ..कोई विरोध ,<br />
नहीं था खास , सो <br />
भ्रष्टाचार के नाम पर <br />
ध्वनिमत से प्रस्ताव हो गया पास !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!<br />
<br />
तभी ,<br />
धीरे से जनता की आवाज आई ,<br />
उसने भी ,<br />
अपनी राय बताई |<br />
न हाथी , न पंजा न फूल न रोटी, <br />
अरे ........बहुत हो ...गया <br />
अभी भी वक्त है <br />
सुधर जाओ ...और <br />
चुनाव चिन्ह ले लो '''सफेद टोपी ''<br />
<br />
</div>Mamta Bajpaihttp://www.blogger.com/profile/00085992274136542865noreply@blogger.com25