Tuesday 11 December 2012

रामायण


रामायण के
राम
यथार्थ या कल्पना ?
अनुत्तरित   प्रश्न ....
अयोध्या के अवशेष ,
रामसेतु ,
असंख्य गाथाएँ ......
अनेकों विवाद ....
पर
कल्पना हो या यथार्त
महत्व  तो भावना का है
शायद ....राम रहे हों ...या
न भी रहे हों ...
रावण भी रहा हो या ...न भी हो
पर सच तो ये है कि
राम और रावण
सिर्फ भावनाओं के नाम हैं
एक "सद भावना ''
दूसरी "दुर्भावना ''
जो आज तक
 विद्यमान है हर दिल में
कोई ग्रन्थ, उपदेश
नहीं कर सके अंत इसका
अब ये हमारी सोच पर निर्भर है
किसे हम पालें पोशें
और किसे
 कान पकड़ कर कर दें बाहर
राम रावण युद्ध
आज तक जारी है
हमारे दिलों में .....
कभी
 राम का पलड़ा भारी  होता है तो ,
कभी
रावण का भी !!!
आसान  नहीं है युद्ध विराम
बस इसी युद्ध में
 काम आती है "रामायण ''
जो समझाती  है मायने रामत्व के ..
करती है सहायता ...
 कान पकड कर,रावण को
 बाहर का  रास्ता दिखाने में
तो फिर
क्या फर्क पड़ता है इससे
कि  पात्र काल्पनिक हैं
या सजीव !!



Monday 3 December 2012

रिश्तों की जमींन


रिश्तों  की जमीन
सींची  जाती है जब
 प्रेम की  कोमल भावनाओं  से
जोती जाती है
अपनत्व के हल से
डाला जाता है बीज
विस्वास का
तब निश्चित ही
 फूटता है  अंकुर
अपार संभावनाओं का
पनपता है अटूट रिश्ता
नन्हे नन्हे  दो पत्ते
बन  जाते हैं  प्रतीक
अमर प्रेम के ....
लहलहाती है संबंधों की फसल
फिर वो रिश्ता  कोई  सा भी हो
खूब निभता है
पर आज की इस आपाधापी में
कितना मुश्किल है
निश्छल  प्रेम
अपत्व
भरोसा
हर चहरे पर  एक मुखोटा
फायदा  नुक्सान की तराजू पर तुलते रिश्ते
अपने स्वार्थ में लिप्त आदमी
भूल चूका है
निबाहना !!!
पर कभी जब
 हो जाता है सामना विपत्ति से
तब यही लोग
थामने लगते है रिश्तों की लाठी
गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं  ये
ढीट होते हैं
हमेशा ही जिम्मेदार ठहराते
औरों को
दरकते रिश्तों के लिए
और खुद हाथ झाड़ कर
दूर खड़े हो जाते
मासूम बन  कर

ममता